Book Title: Mulachar Pradip Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 7
________________ के मारह से मिबद्ध करते रहते थे। बत उपवास की समाप्ति पर श्रावकों द्वारा हम ग्रन्थों को प्रतियां विभिन्न ग्रंथ भण्डारों को भेंट स्वरूप दे दी जाती थी । भट्टारकों के साथ हस्तलिखित ग्रन्थों के वस्ते के बस्ते होते थे। समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी और न उनके पढ़ने-लिखने का साधन या। व्रतोद्यापन पर उनके प्राग्रहसे अन्यों को स्वाध्यायार्थ प्रतिलिपि कराई जाती थी और उन्हें साधुसन्तों को पढ़ने के लिये दे दिया जाता था। साहित्य सेवा साहित्य सेवा में सफलकोति का जबरबस मोग रहा। कभी-कभी तो ऐसा मालूम होने लगता है जैसे राम्होंने अपने साधु जीवन के प्रत्येक क्षण का उपयोग किया हो । संस्कृत, प्राकृत एवं राजस्थानी भाषा पर इनका पूर्ण अधिकार था। वे सहज रूप में हो काव्य रचना करते थे। इसलिये उनके मुख से जो भी धाश्य निकलता था वही काव्य रूप में परिवर्तित हो जाता था। साहित्य रचना को परम्परा सकलकोलि ने ऐसी आलो कि राजस्थान के बागड़ एवं गुजरात प्रदेश में होने वाले अनेक साधु सन्तों ने साहित्य की सब सेषा की तथा स्वाध्याय के प्रति जन-साधारण को भावना को जाग्रत किया। इन्होंने अपने प्रन्तिम २२ वर्ष के जीवन में २७ से अधिक संस्कृत रचनाएं एवं - राजस्थानी रचनाएं निबद्ध की थी। राजस्थान में ग्रंथ भण्डारों की जो प्रभी खोज हुई है उनमें हमें अभी तक निम्न रचनाएं उपलब्ध हो सकी हैं। संस्कृत को रखनाएं १. मूलाचार प्रदीप, २, प्रश्नोत्तरोपासकाचार, ३. प्रादिपुराण, ४. उत्तरपुराण, ५. शातिमाथ परित्र. ६. पर्ख मान चरित्न, ७. मल्लिनाथ धरित्र, ८ यशोधर चरित्र, ६. धन्यकुमार चरित, १०. सुकुमाल चरित्र, ११. सुदर्शन चरित्र, १२ सभाषिलावली, १३ पार्श्वनाथ चरित्र. १४, व्रतकथा कोष, १५. नेमिजिन चरित्र, १६.कर्मविपाक, १७. तरवार्थसार दीपक, १८. सिद्धान्तसार दोपक, १६. भागमसार, २०. परमात्मराज स्तोत्र, २१. सारचतुविशतिका, २२. श्रीपालीरित्र, २३. जम्मूस्वामी चरित्र, २४. द्वादशानुप्रेक्षा । पूजर ग्रन्थ २५. अष्टाह्निका पूजा, २६ सोलहकारण पूजा, २७. गरगपरवलय पूषा । राजस्थानी कृतियां १. पाराषना प्रतिबोधसार, २. नेमीश्वर गोष, ३. मुक्तावलि गीत, ४. पमोकार फल गीत, ५. सोलहकारण रास, ६. सारशिखामणि रास, ७. शान्तिनाय फागु। [ २६. ]Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 544