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साथ-साथ वर्ण-लाभ को मानव जीवन का औदार्य य साफल्य माना हैं; जिसने शद्ध-सात्त्विक भावों से सम्बन्धित जीवन को धर्म कहा है जिसका प्रयोजन सामाजिक, शैक्षणिक, राजनैतिक और धार्मिक क्षेत्रों में प्रविष्ट हुई करीतियों को निमूल करना और चुग को शुभ-संस्कारों से संस्कारित कर भोग से योग की और मोड़ देकर वीतराग श्रमण-संस्कृति को जीवित रखना हैं और जिसका नामकरण हुआ है 'मूक माटी'।
"मदिया जी (जबलपुर) में द्वितीय वाचना का काल था सृजन का अथ हुआ और नयनाभिराम-नयनागिरि में पूर्ण पथ हुआ समवसरण मन्दिर बना जब गजरथ हुआ।
-गुरुचरणारविन्द-चञ्चरीक
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