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महावीर : मेरी दृष्टि में देख रहे हैं : मेरो मुसीबत भी देख रहे हैं कि कुछ है जो नहीं कहा जा सकता। हो सकता है कि आप थोड़ा समझ जाएं। लेकिन, एक किताब हैं, न आंख है, न तड़प है, न पीड़ा है। सब साफ-सुथरा सीधा है । फिर, किताब बचती है |
इसमें से किसी ने भी यह फिक्र नहीं की कि किताब बचे । इन सबकी फिक्र यह थी कि कह दें तो बात खत्म हो जाए। इससे ज्यादा उसको बचाना नहीं है । लेकिन, बचा ली गई। बचाने वाले लोग खड़े हो गए । उन्होंने कहा इसको बचाना होगा; बड़ी कीमतो चीज है; इसको बचा लो। उन्होंने बचाने की कोशिश की । फिर उनकी बचाई हुई किताब पर किताबें चलती आईं, टीकाएं होती रहीं । और वह बचाना भी महावीर के ठीक सामने नहीं हो सका । उसका कारण है कि शायद महावीर ने इन्कार किया होगा । बुद्ध ने इन्कार किया होगा कि यह सामने न हो । तुम लिखना मत । तो वह तीन-तीन सो, चार-चार पौ, पांच-चांच सौ वर्ष बाद हुआ, यानी जो भी लिखा गया है सुनकर नहीं लिखा गया है । किसी ने सुना है. फिर किसी ने किसी से कहा है । ऐसे दो चार पीढ़ी बीत गई हैं और कहते-कहते वह लिखा गया है। महावीर असमर्थ हैं कहने में । फिर उनको सुननेवाले ने किसी से कहा है, फिर उसने किसी से कहा है, फिर, दो, चार पांच पीढ़ियों के बाद वह लिखा गया है । फिर उस पर टीकाएं चलती रही हैं, विवाद चलते रहे हैं । वे हमारे पास शास्त्र हैं ।
अगर किसी को महावीर से चूकना हो तो उन शास्त्रों से सुगम उपाय नहीं । इन शास्त्रों में चला जाए तो वह महावीर तक कभी नहीं पहुंच सकेगा । तो मैं
कोई शास्त्रों से महावीर तक पहुंचने की न तो सलाह देता हूँ और न मैं उस
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रास्ते से उन तक गया हूँ और न मानता हूँ कि कोई कभी जा सकता है । मैं बिल्कुल ही अशास्त्रीय व्यक्ति हूँ । अशास्त्रीय से कहना चाहिए एकदम शास्त्रविरोधी ।
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शास्त्रीय रास्ता दिखाई
फिर, महावीर तक पहुंचने का क्या रास्ता है ? पड़ता है तो इसलिए साधु-संन्यासी शास्त्र खोले हुए हैं, खोज रहे हैं महावीर को और क्या रास्ता है और क्या मार्ग है ? अगर सारे शास्त्र खो जाएं तो साधु, संयासियों और पंडितों के हिसाब से महावीर खो जाएंगे । है इस में ? अगर सारे शास्त्र खो जाएं तो महावीर का क्या महावीर खो जायेंगे । लेकिन क्या सत्य का अनुभव खो सकता है सम्भव है कि महावीर जैसी अनुभूति घटे और अस्तित्व के किसी कोने में
क्या यह
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क्या बचाव बचाव है ?