Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन १७. यदि पाताल, अटवी, पर्वत, वृक्ष एवं समुद्र में भी कोई प्रवेश कर
जाय तो भी मृत्यु-सिंह वहाँ भी उसे नहीं छोड़ता (११९.२२) ।
सूक्तियाँ
१. पुत्रहीन की गति नहीं है (१३.२२) । २. डोंब के कबूतर को भेरीशब्द से क्या (३८.२१) ? ३. कुम्हारिन के प्रसूता होने पर लुहारिन द्वारा घी पीने से क्या
(४८.२७) ? ४. लोक में नारियों के लिए पति देवता होते हैं (५४.२१, २६५.२६) । ५. महानिधि को प्राप्त करने में उत्पात होते ही हैं (७९.१०) । ६. अज्ञान दुःख और भय का कारण है (८०.१)। ७. महिला के हृदय की गति और देवगति सर्वथा चपल होती है
(१०५.४)। ८. अपना दुःख उससे कहना चाहिए जो हृदय के काँटे को निकाल सके
(१०७.१२)। ९. सुन्दरता अथवा कुरूपता प्रेम का कारण नहीं होती (१०७ २९,
२३२-३३)। १०. मिलन और विछोह करानेवाली दृष्टि में जो पड़ जाय वही प्रियतम
हो जाता है (१०७-३०)। ११. सत्पुरुष प्रतिज्ञा भंग नहीं करते (१०८.१७) । १२. महिलाएँ प्रकृति से ही किसी कार्य में स्थिर नहीं होती
(१२१.२२) । १३. महिलाएँ निम्न-कोटि के कार्यों की ओर प्रवृत्त होती हैं (१२१.२३)। १४. तपस्वियों के लिए असाध्य क्या है (१२२-१६) ? १५. सज्जन कभी दूसरों को दुःख देनेवाले वचन नहीं बोलते (१३४.१)। १६. सज्जन के समागम से सज्जनों को कभी संतोष नहीं होता
(१३४.३)। १७. जिसके हृदय में व्यवहार-कुशलता हो ऐसे प्रियजन को कौन छोड़ता
है (१४७.१९) ? १८. लोक में कुल-बालिकाएँ शीलवती होती हैं (१८१-१२) । १९. यह जगत् में प्रसिद्ध है कि विष की औषधि विष ही होती है
(२३६-३)। २०. वैद्य को बुलाने कोई अकेला नहीं जाता है (२३६-१७) ।