Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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परिच्छेद एक अर्थोपार्जन के विविध साधन
प्राचीन भारतीय व्यापारिक क्षेत्र में यद्यपि धन कमाने का प्रमुख साधन अनेक वस्तुओं का क्रय-विक्रय ही था, तथापि धनार्जन के लिए अनेक सही एवं गलत तरीकों का भी उपयोग होता था। कुछ कार्य ऐसे थे जिनसे धन तो आता था किन्तु वे उपाय निन्दनीय समझे जाते थे। और कुछ कार्य ऐसे थे जो निन्दनीय नहीं थे, यद्यपि उनसे लाभ सीमित होता था।
उद्द्योतनसूरि ने कुवलयमालाकहा में इन दोनों प्रकार के साधनों का वर्णन किया है। कुछ अन्य साधन भी उल्लिखित हैं, जो तत्कालीन समाज में धनार्जन के लिए प्रयुक्त होते रहे होंगे। निन्दित साधन
मायादित्य और स्थाणु के मन में जव धन कमाने की बात उठी तथा पहला प्रश्न यही उठा कि कैसे धन कमाया जाय, क्योंकि बिना धन के धर्म एवं काम दोनों लौकिक पुरुषार्थ पूरे नहीं हो सकते,' तव मायादित्य ने सुझाया'मित्र, यदि ऐसी बात है तो वाराणसी चलो। वहाँ हम लोग जुआ खेलेंगे, सेंध लगायेंगे (खनन करेंगे), कर्णाभूषण छीनेंगे, राहगीरों को लूटेंगे, जेब काटेंगे (गांठ काटेंगे), मायाजाल रचेंगे, लोगों को ठगेंगे तथा वह सब काम हम करेंगे, जिसजिससे धन की प्राप्ति होगी' ।' स्थाणु को यह सुनकर बड़ा खेद हुआ। उसने इन्हें १. धम्मत्थो कामो वि.""तह वि करेमो अत्थं होहिइ अत्थाओ सेसं पि। -कुव०
५७.१३-१५. २. जइ एवं मित्त, ता पयट्ट, वाणारसिं वच्चामो। तत्थ जूयं खेल्लिमो, खत्तं
खणिमो, कण्णुं तोडिमो, पंथं मूसिमो, गंठिं छिण्णिमो, कूडं रइमो, जणं वंचिमो, सव्वहा तहा तहा कुणिमो जहा जहा अत्थं-संपत्ती होहिइ। -कुव० ५७.१६.१७.