Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन द्वारा भेट देने का अङ्कन है।' लगता है यह प्रथा उद्द्योतन के समय तक ज्यों की त्यों थीं। आगे भी इसका अनुसरण होता रहा।
_ 'दिण्णा-हत्थ-सण्णा' का उल्लेख भी महत्त्वपूर्ण है । प्राचीन व्यापार-पद्धति में यह एक नियम सा बन गया था कि रत्न एवं मोतियों का मोल-भाव मुंह से जोर-जोर से चिल्लाकर नहीं किया जाता था। बल्कि विक्रय-योग्य मोतियों एवं हीरों पर एक कपड़े का टुकड़ा अथवा रूमाल ढक दिया जाता था। उसके अन्दर बेचनेवाला एवं खरीददार अपने हाथ डाल लेते थे और बिना कुछ बोले, हाथ के इशारों द्वारा सौदा तय कर लेते थे। इसी को उद्योतन ने 'दिण्णा-हत्थसण्णा' कहा है । मारवाड़ियों में अभी भी सौदा तय करने की यह पद्धति प्रचलित है।
स्वार्थी व्यापारी-विदेशों से धन कमाकर लौटते समय कभी-कभी ऐसा होता था कि सार्थवाह के मन में लोभ आ जाता और वह अकेले ही सारे अजित धन को हड़प लेना चाहता था। जब जहाज बीच समुद्र में पहुँचता तब वह अपने मित्र व्यापारी को किसी बहाने मरवाने या समुद्र में डुबाने का प्रयत्न करता और बहुत बार अपने इस दुष्कृत्य में सफल भी हो जाता था। ६ ठी से १० वीं सदी तक के जैन-साहित्य में इस प्रकार के उदाहरण खूब मिलते है। इनसे ज्ञात होता है कि समुद्र-यात्रा में जितनी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती थीं, जितना अधिक लाभ होता था, उतने ही व्यापारी लोभी भी होते थे। कुव० में धनदेव ने इसी भावना से भद्रश्रेष्ठी को समुद्र में डुवा दिया था। समुद्री-तूफान
प्राचीन समय में समुद्र-यात्रा निरापद नहीं थी। एक ओर जल-दस्युओं से जितना भय था, उतना ही समुद्री तूफानों से । कुव० में समुद्री-तूफान का जितना अच्छा वर्णन किया गया है, उतना अन्यत्र नहीं। लोभदेव एवं सागरदत्त की समुद्र-यात्रा में आये समुद्री-तूफान के वर्णन से निम्न बातें प्रकाश में आती हैं :
पंजर-पुरुष-जहाज में एक ऐसा जलवायु विशेषज्ञ होता था, जो बादल के टुकड़ों के रंग देखकर सम्भावित तूफान का ज्ञान कर सकता था। यह अधिकारी जहाज के मस्तूल पर बैठा रहता था और वहीं से जहाज के संचालक को आगाह कर देता था। सागरदत्त के पंजर-पुरुष ने उत्तर दिशा में एक काले मेघपटल को देखकर यह बतला दिया था कि यह काजल के समान श्याम मेघ बड़ा खतरनाक है। अत: तुरन्त जहाज को रस्सियां ढीली कर दो, पालों को खोल दो, सारे माल को जहाज के तलघरे में भेज दो और जहाज को स्थिर
१. याजदानी, अजंता, भा० १, पृ० ४६.४७; सार्थवाह, पृ० २३८ पर उद्धत । २. ए कल्चरल नोट-डा० अग्रवाल, उ०-कुव० इ०, पृ० १२०.