Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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प्रमुख-धर्म आत्ममांस के समपंण द्वारा की जाती थी, जिसमें प्राण-संशय बना रहता था।' सिर पर चन्द्रधारी शिव की तत्कालीन प्राप्त मूत्तियों से उद्द्योतन का यह वर्णन प्रमाणित हो जाता है।
शिव को विभिन्न प्रसंगों में उद्योतन ने त्रिनयन, हर, धवलदेह एवं शंकर नाम से सम्बोधित किया है । कुमार कुवलयचन्द्र के अंगों की उपमा त्रिनयन से दी गयी है, किन्तु कुमार त्रिनयन जैसा नहीं हो सकता क्योंकि युवती के शरीर से युक्त उसका वामांग हीन नहीं है। शिव के त्रिनेत्र एवं अर्धनारीश्वर रूप का स्पष्ट उल्लेख है । शिव का त्रिनेत्र और अर्धनारीश्वर रूप साहित्य एवं कला में अति प्रचलित है। डा० आर० सी० अग्रवाल ने आबानेरी, ओसिया एवं मेनाल की अर्धनारीश्वर मत्तियों का सुन्दर वर्णन किया है एवं खण्डेला अभिलेख का उल्लेख किया है जिसमें लगभग ७वीं (६४५ ई०) सदी में अर्धनारीश्वर के मंदिर बनवाने का उल्लेख है।
शिव के शरीर का रंग, वाहन एवं सिर पर गगाधारण करने की प्रचलित मान्यताओं को उद्योतन ने एक पंक्ति में सुन्दर एवं अलंकृत रूप में रखा हैधवल-वाहण-धवल-देहस्स सिरे भ्रमिति जा विमल-जल (कुव० ६३.२५) । श्वेत शिवमूर्ति, श्वेत नन्दी एवं शिव के सिर पर गंगा की धारा साहित्य में तो प्रचलित थी ही, उस समय कला में भी इसका अंकन होने लगा था।
___ संकट के समय हर-हर महादेव का स्मरण किया जाता था तथा हर की यात्रा करने की मनौती मानी थी। इस यात्रा का लक्ष्य हर के किस मंदिर की अर्चना करना था यह स्पष्ट नहीं है। सम्भवतः यह महाकालशिव से भिन्न कोई शिवतीर्थ होना चाहिए। यात्रियों का जहाज सोपारक बन्दरगाह की तरफ लौट रहा था। समुद्री तूफान में फंसे हुये यात्री हर की मनौती मानकर उससे बचना चाहते थे। अतः सम्भव है, यह हर का प्रसिद्ध मन्दिर कहीं राजस्थान में ही रहा होगा। राजस्थान में कालकालेश्वर का मन्दिर महाकाल की तरह ही ही पवित्र माना जाता था। आबू का अचलेश्वर का मंदिर भी उन दिनों प्रसिद्ध था।
शिव के योगी स्वरूप की तुलना उद्योतन ने विजयापुरी के पामरजनों से की है। वहाँ के कुछ लोग शंकर जैसे अपार वैभव के स्वामी एवं रभाते हुये मत्त वृषभ को वश में करने वाले थे (शरीर में भभूति लपेटे हुए शिव वृषभ
१. ससिसेहर समाराहण-प्पमुहा पाण-संसय-कारिणो उवाया। - कुव० १३.२७. २. अण्णेक्काए भणियं-अंगेहिं तिणयणो णज्जइ। अण्णेक्काए भणियं-होज्ज हरेण
समाणो जइ जुवई-घडिय-हीण-वामद्धो। -वही २६.८, ९. ३. रिसर्चर, २, पृ० १७. ४. को वि हरस्स जत्तं उवाइएइ । -कुव० ६८.१८. ५. श०-रा० ए०, पृ० ३७७.