Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन जाता है। पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग और गन्धर्व ये आठ देव व्यन्तर कहलाते हैं। इनकी पूजा के लिए प्रत्येक के अलग-अलग चैत्यवृक्ष थे। पिशाच का कदम्ब, यक्ष का वट, भूत का तुलसी, राक्षस का कांडक किन्नर का अशोक, किंपुरुप का चंपक, महोरग का नाग और गन्धर्व का तेन्दुक ।' उद्द्योतनसूरि ने इन आठों देवताओं का सरागी देव के रूप में उल्लेख किया है।' स्वरूप एवं कार्यों के आधार पर इन्हें दो भागों में विभक्त किया जा सकता है(१) सहयोगी देवता-किन्नर, किंपुरुष, गन्धर्व, नाग, नागेन्द्र, महोरग,
यक्ष, लोकपाल (५३.६) एवं विद्याधर (२३४.२५) (२) उत्पाती देवता-भूत, पिशाच, राक्षस, वेताल (१३.७),
महाडायिनी (६८.२४), जोगिनी (१५६.१),
कन्या पिशाचनी (१५६.१)। प्राचीन भारतीय साहित्य में इनके सम्बन्ध में प्रचुर उल्लेख मिलते हैं। पुराणकाल में उक्त उत्पाती देवताओं को शंकर के अनुचरों के रूप में स्वीकार कर लिया गया था। वे इनके अधिपति माने जाते थे। कुवलयमाला में इन सब देवताओं के विभिन्न कार्यों का भी उल्लेख हुआ है। तदनुसार उनके स्वरूप आदि के सम्बन्धमें विचार किया जा सकता है।
किन्नर-विन्ध्या अटवि में किन्नर मिथुनों का गीत गंजता रहता था (२८.९) । अन्यत्र भी किन्नर निर्जन-प्रदेश में रहने वाले बतलाये गये हैं। महाभारत में (६६ अ०) राक्षसों, वानरों, किन्नरों तथा यक्षों को पुलस्त्य ऋषि की सन्तान माना गया है। राजप्रश्नीयसूत्र में विमान के शिखर पर किन्नरों की आकृतियाँ बनाये जाने का उल्लेख है। सिंहल (श्री लंका) के चित्रकार भी किन्नरों के चित्र बनाते थे। किन्नर ऊपर से मनुष्यों के समान और नीचे से पक्षियों के समान होते थे।"
किंपुरुष- इनका उल्लेख हनेशा किन्नरों के साथ ही हुआ है। इनका भी पूरा शरीर मनुष्य का नहीं रहा होगा।
गन्धर्व-कुव० में गन्धों का सामान्य उल्लेख है। जाति एवं विद्या को भी गन्धर्व कहा जाता था। जैनसूत्रों में गन्धर्व देश का भी उल्लेख है। उसके निवासियों को विवाहविधि को बाद में गन्धर्व-विवाह कहा जाने लगा होगा। यद्यपि वैदिक युग से गन्धर्वो का उल्लेख मिलता है। किन्तु पुराणों में इनकी उत्पत्ति एवं भेद-प्रभेदों का भी वर्णन उपलब्ध है। वे देवयोनि में माने जाते
१. स्थानाङ्गसूत्र, ८.६५४. २. २५६.३१, ३२. ३. वायु पुराण ६९.२८९ एवं ब्रह्माण्ड पुराण ३.७, ४११. ४. मोनियर विलियम डिक्शनरी मेंउद्धृत-किन्नर शब्द । ५. के० के० कुमारस्वामी, मैडिवल सिंहलीज आर्ट, पृ० ८१. आदि