Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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धार्मिक जगत्
३९५ उपर्युक्त जैनधर्म के सिद्धान्तों के उल्लेख से ज्ञात होता है कि कुवलयमाला में केवल जैनदर्शन और तत्त्वविचार का ही उल्लेख नहीं है, अपितु जनधर्म के अनुयायी किस प्रकार का सामाजिक व्यवहार करते थे तथा सम्यकत्व का पालन करते हुए कैसे गृहस्थ जीवन का निर्वाह करते थे, इसका भी स्पष्ट चित्र मिलता है।
उपर्युक्त धार्मिक विवरण इस बात का प्रमाण है कि उद्द्योतनसूरि अपने समय की सभी धार्मिक विचारधाराओं से परिचित थे। शैवधर्म एवं उसके सम्प्रदायों का उस समय प्राधान्य था, किन्तु हिंसात्मक एवं अनाचार से सम्बन्धित मतों को सामान्य स्वीकृति नहीं थी। राजकीय स्तर पर धार्मिक दृष्टि से कोई बन्धन नहीं था। राजा दढ़वर्मन विभिन्न धार्मिक आचार्यों के मत सुन लेने के बाद उन्हें विदा करता हआ कहता है कि आप सब लोग जायँ और अपने-अपने धर्म, कर्म, क्रियाकलाप में संलग्न रहें। यद्यपि भारतीय दर्शन की सभी शाखाओं का अध्ययन इस युग में होता था, किन्तु पौराणिक धर्म एवं मान्यताओं का समाज में अधिक प्रचलन था। तन्त्र-मन्त्र एवं अन्य अन्धविश्वासों से लोग मुक्त नहीं थे। तीर्थवन्दना धार्मिक एवं पर्यटन की दृष्टि से जोर पकड़ रही थी।
१. वच्चह तुब्भे, करेह णियय-धम्म-कम्म-किरियाकलावे- (२०७.९.).