Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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परिच्छेद दो भारतीय दर्शन
उदद्योतनसूरि ने कुवलयमालाकहा में शिक्षणीय विषयों के अन्तर्गत प्रमुख भारतीय दर्शनों का परिचय दिया है। विजयपुरी के मठ में इनका विधिवत् अध्ययन होता था। अन्यान्य प्रसंगों में भी इन दर्शनों से सम्बन्धित जानकारी ग्रन्थ में प्राप्त होती हैं। इन समग्र सन्दर्भो का विवेचन करने से निम्न दार्शनिक मतों का स्वरूप स्पष्ट होता हैबौद्धदर्शन
विजयपुरी के मठ के दूसरे कक्ष में 'रूप, रस, गंध, स्पर्श एवं शब्द के संयोग मात्र से कल्पित यह संसार है, तथा रूप एवं अर्थ क्षणभंगुर हैं, इन विचारों से युक्त बौद्धदर्शन पर व्याख्यान दिया जा रहा था।' बौद्धदर्शन की यह प्रमुख विचारधारा उसके प्राचीन रूप हीनयान के अनुकूल है। सम्भव है, दक्षिण भारत में महायान का अधिक प्रचार न होने से वहां उसका पठन-पाठन न होता रहा हो।
एक दूसरे प्रसंग में दृढ़वर्मन् के समक्ष बौद्ध आचार्य ने 'जीव की क्षणभंगुरता, वृक्षों की अचेतनता, जगत् की अनित्यता एवं निर्वाण के अभाव होने में विश्वास करना अपना धर्म स्वीकार किया है। राजा ने अपने कुलदेवता के धर्म (जैनधर्म) से विपरीत होने के कारण इस बौद्ध धर्म को दूर से ही त्याग दिया (२०३.२५) । इस प्रसंग में भी महायान के किसी सिद्धान्त का उल्लेख १. एक्कं वक्खाण-मंडलि जाव पयइ-पच्चय"अण्णत्थ रूव-रस गंध फास-सह-संजोय.
मेत्त-कप्पणा-रूवत्थ-खण-भंग-भंगुरं बुद्धं-दरिसणं वक्खाणिज्ज इ, १५०.२६. २. द्रष्टव्य, डा० उपाध्याय-बौद्धदर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन, भाग १. ३. जीवो खण-भंगिल्लो अचेयणा तरुवरा जगमणिच्च।
णिव्वाणं पि अभावो धम्मो अम्हाण णरणाह ॥-२०३-२३ .