Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन प्राप्त होता है (२४.३)। जिस अश्व के जानु में स्पष्ट आवर्त होता है वह अपने स्वामी को युद्धक्षेत्र में गिराकर मृत्यु को प्राप्त कराता है। जिस अश्व के कान में दोष (आवर्त) हो और उसके रोम सीप आकार के हों वह अपने स्वामी की भार्या को दुःखदायी होता है (२४.५) ।
शुभलक्षण (२४.६)-- जिस अश्व के ललाट पर तीन रोम राशियाँ होती हैं, उसका स्वामी निश्चित रूप से यज्ञ दाक्षिण्य के द्वारा विजयी होता है (२४.७) । उपछिद्र के ऊपरी भाग में जिस अश्व के प्रावर्त होता है, उसके स्वामी के धन-धान्य में वृद्धि होती है (२४.८)। जिस अश्व के आगे के दो पगों में स्पष्ट आवर्त हों वह मेहली' अश्व अपने स्वामी को आभूषण से अलंकृत कराता है (२४.९)।
कुवलयचन्द्र अश्व के उपर्युक्त लक्षणों को कहकर उनके उदाहरण देने लगा तो राजा ने रोक दिया और कहा कि कुमार अब वाद में सुनेंगे--कुमार, पुणो वि सत्था सुणिहामी (२४.९)। इस कथन से ज्ञात होता है कि उद्द्योतनसूरि उपर्युक्त अश्वविद्या का निरूपण किसी अश्वशास्त्र के आधार पर कर रहे थे, किन्तु विस्तार के भय से उन्होंने यहीं समाप्त कर दिया।
ज्योतिष-विद्या
___ ज्योतिष-विद्या के अन्तर्गत यात्रा के लिए मुहूर्त, जन्म, विवाह एवं गहनिर्माण व अन्य शुभ कार्यो के लिए तिथि, नक्षत्र और और लग्नशुद्धि का विचार किया जाता है। कुव० में ७२ कलाओं के अन्तर्गत तीसरे नम्बर पर ज्योतिषविद्या का उल्लेख किया गया है। प्रसंगवशात् सम्पूर्ण नन्थ में अनेक वार ज्योतिष-विद्या का उल्लेख हुआ है।
सर्वप्रथम ग्रन्थ में कुवलयचन्द्र के जन्म के उपरान्त ज्योतिष-विद्या का विशद वर्णन देखने को मिलता है। राजा दृढ़वर्मन् कुमार के भविष्य को जानने के लिए सिद्धार्थ नामक साम्वत्सरिक को बुलवाते हैं। साम्वत्सरिक सिद्धार्थ प्रथम कुवलय चन्द्र के जन्म के समय के नक्षत्र, लग्न आदि का ज्ञान कर कुमार को चक्रवर्ती होने की घोषणा करता है। बाद में राजा के आग्रह करने पर वह राशियों की गणना, स्वरूप एवं उनके गुणों का विवेचन करता है।
कुवलयचन्द्र के जन्म के समय पर विचार करते समय साम्वत्सरिक ने सम्वत्सर, ऋतु, मास, तिथि, वार, नक्षत्र, राशि, योग, लग्न, ग्रह, होरा आदि पर विचार किया है (१९.५,६)। राशियों के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी १. मेहली का अर्थ कोश में पार्श्वनाथ तीर्थकंर के वंश का एक साधु किया गया
है (पा० स० म०) । पार्श्वनाथ अश्व वंश के थे। सम्भव है, अच्छे घोड़ों को भी उनके वंश के नाम में व्यवहृत किया जाने लगा हो।