Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
दूसरा भाग दिखाया, जिसमें तिथंच गति के जीवों का चित्रण था । वह चित्र चित्रकला की दृष्टि से श्रेष्ठ एवं सुस्पष्ट था-तं चिय सुव्वसि णिउणो तं चित्तकलासु सुठ्ठ णिम्माओ-(१८८.३२) । अतः उन्होंने मुझसे उस पर क्षण भर दृष्टि डालने का आग्रह किया। उस चित्र में सिंह और गज का युद्ध, बाघ और वृषभ का युद्ध, भैंसों का युद्ध तथा मोर और सर्प का युद्ध चित्रित था (१८८.३३, १८९.१) एवं निर्बल जीव का बलवान जीव द्वारा कैसे भक्षण किया जाता है इसका विस्तृत चित्रण था (१८९.५,१७) ।
इसके बाद उन्होंने मुझे नरक का चित्र दिखाया।' उसमें नारकियों को परस्पर लड़ते हुए तथा नाना दुःख प्राप्त करते हुए चित्रित किया गया था। वैतरणी नदी बनी हुई थी, जिसमें गर्म पानी बह रहा था, इत्यादि । तदन्तर उन्होंने मुझे स्वर्ग का चित्र दिखाया । उसमें देव, अप्सरा तथा इन्द्र आदि का अनेक सुख भोगते हुए चित्रण था। अन्त में शाश्वत सुखवाले मोक्ष का चित्रण था-लिहिओ मोक्खो अच्चंत-सुभ-सोक्खो-(१९०.१३)।
इस 'संसार-चक्र' नामक पटचित्र के अतिरिक्त उन मुनिराज के पास एक दूसरा भो पटचित्र था-दिळं मए तस्सा एक्क-पएसे अण्णं चित्तयम्म (१९०.२१)। मेरी प्रार्थना पर उन्होंने उसे भी खोलकर दिखाया। उसमें दो वणिक पुत्रों की कथा चित्रित थी, जिसमें निम्नोक्त दृश्य थे
१. प्रासाद, नागरिक लोग, विपणिमार्ग तथा राजमंदिर में बैठे हुए राजा
से युक्त चंपा नगरी का चित्र (१९०.२४-२७) । २. धणदत्त नामक श्रेष्ठी एवं उसकी भार्या का दो पुत्रों सहित चित्र
(२८.२६)। ३. दोनों वणिकपुत्र व्यापार करते हुए-वणिय-कम्मम्मि (१६१.२)। ४. हल जोतते हुए-हल-णंगल-जोत्त-पग्गहःविहत्था। (१६१.६) । ५. पशु लादते हुए-पारोविय-गोणि-भरियाला । (१६१.८)। ६. मजदूरी न देता हुआ उनका मालिक (१६१.१०)। ७. भीख मांगते हुए (१२) । ८. समुद्र तट पर स्थित जहाज में नोकरी मांगते हुए (१५) । ९. बीच समुद्र में भग्न-जहाज (१८)। १०. फलक पर आरूढ़ दोनों वणिक् पुत्र (१९)। ११. रोहण-द्वीप पर परस्पर बातचीत करते हुए (२१)।
१-एयं पि पेच्छ णरयं कुमार लिहियं मए इह पडम्मि । १८९.१८. २. एयं पि मए लिहियं कुमार सग्गं सुओवएसेण । १८९.३२.