Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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परिच्छेद छह मूर्ति शिल्प
उद्द्योतनसूरि ने मूर्तिशिल्प के सम्बन्ध में यद्यपि अधिक जानकारी नहीं दी है, किन्तु जहां कहीं भी किसी मूर्ति का उल्लेख किया है उसका वर्णन भी किया है । कुवलयमालाकहा में मूर्ति शिल्प से सम्बन्धित जितने उल्लेख हैं उन्हें विषयानुसार इस प्रकार विभक्त किया जा सकता है। तीर्थङ्कर मूर्तियां
पद्मप्रभ देव सौधर्म विमान में जिनगृह में प्रविष्ट हुआ (९५.७) । वहाँ उसने अन्यान्य वर्णों से युक्त, निज वर्ण, प्रमाण, मान द्वारा निर्मित शाश्वत जिनवर विम्ब को देखा। कोई जिनप्रतिमा स्फटिकमणि से, कोई सूर्यकान्तमणि से, कोई महानीलमणि से, कोई कर्केतनरत्न से निर्मित थी।' तथा कोई प्रतिमा मुक्ताफल से निर्मित तेजस्वी थी। कोई श्रेष्ठ पद्मराग जैसी प्रभायुक्त थी, एवं कोई मरकतमणि द्वारा निर्मित होने से श्यामदेह वाली थी (८.१ ) । अन्य प्रसंगों में उद्योतन ने प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव की मुक्ताशैल निर्मित तथा स्फटिकरत्न द्वारा निर्मित
-उसहसामिस्स फलिहरयणमई महापडिमा (१२८.६) प्रतिमाओं का उल्लेख किया है । इस संक्षिप्त विवरण से निम्न तथ्य ज्ञात होते हैं
१. मूर्तियां कई वर्षों के मिश्रित रंग वाली होती थीं। २. अपने रंग के अनुसार प्रमाण और मानयुक्त होती थीं। ३. स्फटिकमणि, सूर्यकान्तमणि, महानीलमणि, कर्केतनरत्न, पद्मराग
मणि, मरकतमणि तथा मुक्ताशैल द्वारा मूत्तियां बनती थीं। १. अण्णोण्ण-वण्ण-घडिए णिय वण्ण-पमाण-माण-णिम्माए।
उप्पत्ति-णास-रहिए-जिणवर-बिंबे पलोएइ ॥ फलिह-मणि-णिम्मलयरा के वि जिणा पूसराय-मणि-घडिया।
के वि महाणीलमया कक्केयण-णिम्मिया के वि ।। कुव० ९५.८-९. २. दिठ्ठा तेण मुत्तासेल-विणिम्मिया"पढम जिणवरस्स पडिमा ११५.४, ११९.३.