Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन अभ्यन्तर-अस्थानमण्डप एवं राजा-रानी का वासभवन एक साथ आस-पास में हो वनते रहे होंगे। धवलगह के ऊपरी तल पर इनका निर्माण होता था। उद्द्योतन के वर्णन के अनुसार अभ्यन्तर-आस्थान-मण्डप का आकार स्पष्ट नहीं होता, किन्तु बाण के अनुसार मुख्यतः यह खुला हुआ मण्डप था जिसकी छत स्तम्भों पर टिकी हुई थी। मध्यकाल में इसे दरबार-खास कहा जाता था। दिल्ली के लाल किले में बना हुआ दरबार-खास भी चारों ओर से खुला हुआ केवल खम्भों पर टिका हुआ है।'
वासभवन
उद्द्योतनसूरि ने वासभवन का पाँच प्रसंगों में उल्लेख किया है। राजा दढ़वर्मन् ने आमसभा का विसर्जन कर रानी प्रियगुंश्यामा के वासभवन में प्रवेश किया (११.२१) । कुमार कुवलयचन्द्र के जन्म की सूचना राजा के वासभवन में जाकर प्रियंवदा परिचारिका के द्वारा दी जाती है। तब राजा वर्धापन मनाने का आदेश देता है (१८.७)। कौसाम्बी नगरी में शाम होते ही कामिनीघरों में प्रियतम के स्वागत में तैयारियाँ प्रारम्भ हो गयीं-वासघर सजाया जा रहा था, चित्रशालिकाओं की धूल साफ की जा रही थी, मदिरा में कपूर के टुकड़े डाले जा रहे थे, घरों पर पुष्पमालाएं लटकायी जा रही थीं, फर्श पर पत्रलता चित्रित की जा रही थी, पुष्प-शैया तैयार की जा रही थीं, धूप-पात्रों में सुगन्धित द्रव्य जलाये जा रहे थे, शिक्षित शुक-सारिकाओं को पिंजरों में मधुर-प्रलाप के लिए रखा जा रहा था, नागवलो के पत्तों के बीड़ा बनाकर उन्हें पानदान में रखा जा रहा था, कपुर की छड़े सन्दूकचो में रखी जा रही थीं, कक्कोल के गोले रखे जा रहे थे, जाल-गवाक्षों पर विछावन और प्रासन रखे जा रहे थे, शृगाटक, वलाक्षहार एवं कर्णाभूषण पहिने जा रहे थे, प्रदीप जलाये जा रहे थे, मधु यथास्थान रखी गयो, बालों को अच्छी तरह सजाने के लिए स्नान-पात्रों में स्नान किया जा रहा था, मदिरा-पात्रों में मदिरा उड़ेली गई, हाथों में चसक ले लिए गये, शैया के समीप में अनेक खाद्य एवं पेय सामग्री के पात्र रख लिए गये, इस तरह कामिनियों के वासघरों में प्रियतम के स्वागत की तैयारियां पूरी नहीं हो पा रही थीं (८३.४.१०)।
तीसरे प्रसंग में राजा पुरन्दरदत्त सभी दैनिक कार्यों से निवृत होकर वास-भवन में प्रविष्ट हुआ (८४.५) । वहां एकान्त में उसने मुनियों की चर्या पर विचार किया एवं उसे देखने के लिए अपना रूप परिवर्तन कर सभी परिचारकों एवं अंगरक्षकों को छोड़कर वासभवन से बाहर निकला । तथा दद्दरसोपान-वोथ से उतरकर नीचे चला गया (८४.२५) । दो तरुण युवतियों की
१. अ०-का० सां० अ०, पृ० ३२. २. सव्वहा णिग्गओ राया वास-घराओ-(८४.२५).