Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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नाट्य कला
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सन्दर्भ रासनृत्य की इसी परिभाषा को पुष्ट करता है, जिसमें मंडलीनृत्य और ताल आवश्यक था।
१५-१६वीं सदी में कृष्णभक्ति के प्रचार के कारण रासमंडली का विकास अधिक हुआ। रासलीला नृत्य और संगीत प्रधान नाट्य है, जिसमें खुले रंगमंच और सामान्य प्रसाधन-सामग्री का उपयोग होता है । उद्योतन ने 'लीला' शब्द का प्रयोग किया है। इससे ज्ञात होता है कि उस समय तक रासनृत्य के साथ कृष्ण की लीलाओं का भी प्रदर्शन होने लगा होगा। डा० श्याम परमार के अनुसार रासक या रासलीला नृत्य, अभिनय और संगीत की त्रिवेणी का एक मिलाजुला लौकिक रूप है।'
___डांडिया नृत्य-डांडिया नृत्य के सम्बन्ध में उद्योतन ने केवल संकेत किया है कि विनोता नगरी में डंडे का उपयोग केवल छत्र एवं नृत्य में होता था-दंडवायाइं णवरि दीसंति छत्ताण य णच्चणहं, (८.२३)। वर्तमान में डांडियाँ नृत्य जालोर तथा मारवाड़ का प्रतिनिधि नृत्य है । अतः ग्रन्थकार अवश्य ही इससे परिचित रहे होंगे। डांडिया नृत्य में १५-२० आदमी हाथों में डंडे लेकर नाचते हैं। घेरे के बीच ढोल बजाया जाता है तथा नृत्यकार नाचते हुए परस्पर डंडों की चोट से मधुर शब्द करते हैं।'
चर्चरीनत्य-कुव० में चर्चरी का दो बार उल्लेख हुआ है। सुधर्मा स्वामी ने रासनृत्य में एक चर्चरी द्वारा चोरों को सम्बोधित किया (४.२६) । तथा दर्पफलिक मद्य के प्रभाव से प्रक्षिप्त अवस्था में असम्बद्ध अक्षरों से युक्त एक चर्चरी गाता हुआ नृत्य करने लगा।
भाण एवं डोम्बलिक प्रसिद्ध लोकनत्य हैं ।५ सिग्गडाइय के स्वरूप के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं हुई। संगीत
____ कुवलयमाला में संगीतकला के सम्बन्ध में कोई विस्तृत वर्णन किसी एक प्रसंग में उपलब्ध नहीं है। किन्तु फुटकर प्रसंगों में अनेक बार गान्धर्वकला तथा गीत गाये जाने का उल्लेख हुआ है। कुवलयचन्द्र के जन्म के समय महिलाओं के गीतों से दिशामण्डल व्याप्त हो गया। कन्याराशि में उत्पन्न होने के कारण
१. लोकधर्मी नाट्य-परम्परा, पृ० १८. २. रा० लो०, पृ० १४. ३. द्रष्टव्य, वही।
इमं असंबद्धक्खरालाव-रइयं चच्चरियं णच्चमाणो, ५. द्रष्टव्य, चतुर्भाणी-डा० मोतीचन्द्र । ६. सरहस विलया "गंधव्व-पूरंत-सहं दिसा-मंडलं, १८.१७.