Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन भी कहा है कि ऐसी कोई कला, ऐसा कोई कौतुक और ऐसा कोई विज्ञान शेष नहीं था, जिसके विद्वान् पंडित राजा दृढ़वर्मन् के आस्थानमण्डप में उपस्थित न हों।' उपाध्याय एवं विद्वानों का पूर्ण सम्मान होता था। शिक्षाग्रहण करने वाले शिष्य अपने उपाध्याय की सेवा करने को तैयार रहते थे।
कुवलयमाला में शिक्षा-सम्बन्धी प्राप्त उपर्युक्त विवरण इस बात का संकेत है कि गुप्तयुग के उपरान्त भी शिक्षणीय विषयों में विविधता बनी हुई थी। आदर्श और व्यवहार का शिक्षा में समन्वय था । यद्यपि सांस्कृतिक विस्तार के कारण छात्रों की जीवनचर्या में एकरूपता नहीं रह गयी थी, फिर भी गुरुशिष्य के सम्बन्ध शालीनतापूर्ण और घनिष्ठ थे।
१. सा नत्थि कला तं णत्थि कोउयं तं च नत्थि विण्णाणं ।
जं हो तस ण दीसइ मिलिए अत्थाणिया मज्झे ॥१६.२७ २. 'देव, पसीदसु, करेसु पडिवज्जसु ओलग्गं त्ति । तुब्भे उवज्झाया, अम्हे चट्टट
त्ति'-१९७८