Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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भाषाएँ तथा बोलियाँ
२५९ बातचीत प्रारम्भ हो गयो-अरे अराष्ट्रक ! बोल बे, यदि नहीं भूला है तो। जनार्दन ! पूछता हूँ-तुमने कल कहाँ जींमण (भोजन) किया था ? उसने कहा-जान जाओ, मैंने वहीं जीमा था, जहाँ कंठा भूषण पहिने हुए किरात के लड़के ने जीमा था ? २ तो उसने कहा-क्या वलक्ख किसो विशेष-महिला का नाम है ? ३ तब पहले ने कहा-अहा । यह स्त्री तो सम्पूर्ण अपने लक्षणों से गायत्री जैसी है (२०)।
तब दूसरे ने कहा-वर्णन करो, वहाँ का भोजन कैसा था ? वर्णि कीदृशं तत्र भोजनं (२१)। दूसरे ने कहा-त्यागी भट्ट ! मेरा भोजन तो स्पष्ट है। मैं तक्षक हूँ, वासुकी नहीं। तब दूसरे ने कहा-तुमने तो क्या कर दिया ? तुम्हारा पेट बतलाता है। तुमसे भोजन के विषय में पूछा, तुम अपना नाम बतलाते हो-कत्तु पडत्ति तउ, हृद्धय उल्लाव, भोजन स्पृष्ट स्वनाम-सिंघसि ।
___एक दूसरे ने कहा-अरे तू बड़ा महामूर्ख है, ये पाटलिपुत्र के रहनेवाले कहीं समासोक्ति समझेगे ? अरे रे बड्डो महामूर्ख , ये पाटलिपुत्र-महानगरावास्तव्ये ते कुत्था समासोक्ति वुझंति ।
दूसरे ने कहा-हम से तो ये अधिक मूर्ख हैं-अस्मादपि इयं मूर्खतरी-। दूसरे ने पूछा-किस कारण- 'काई कज्जु' ? उसने जवाब दिया-मूर्ख और चतुर के कथन में प्रचुर (भेद है)-अनिपुण निपुणाथोक्ति-प्रचुर-। दूसरे ने कहापर, मुझे क्या ? छोड़ो, हम तो विद्वान् हैं-'मर काई मां मुक्त, अम्बोपि विदग्धः संति--(२४) । तीसरे ने कहा 'भट्ट' सचमुच तुम विद्वान् हो, भोजन में क्या था मुझे स्पष्ट रूप से कहो-भट्टो, सत्यं त्वं विदग्धः, पुणु भोजने स्पष्ट नाम कथित(२५)। उसने कहा-अरे मूर्ख, वासुकी के हजार मुख कहे गये हैं-अरे, महामूर्खः वासुकेवंदन-सहस्रं कथयति (२६)।
छात्रों की यह बातचीत सुनकर कुवलयचन्द्र ने सोचा अहो असम्बद्ध अक्षर एवं वार्तालाप का प्रयोग करने वाले ये ग्रामीण बालक हैं -अहो असंबद्धक्खरालावत्तणं बाल-देसियाणं (१५१.२६)। दूसरों के भोजन से इन्होंने अपने शरीर पुष्ट कर रखे हैं तथा विद्या, विज्ञान, ज्ञान, विनय से हीन हैं । छात्रपने को छोड़ चुके हैं (१५२.१) । कुमार ने अन्य छात्रों से पूछा-- अरे भट्टपुत्रो, क्या तुम राजकुल का वृतान्त नहीं जानते हो?"
१. रे रे आरोट्ट, भण रे जाव ण पम्हुसइ। जनार्दन, प्रच्छहुँ कत्थ तुब्भे कल्ल
जिमियल्लिया-१५१.१८-१९) । २. साहिउं जे ते तओ तस्स वलक्खएल्लयहं किराडहं तण ए जिमियल्लया-वही २०. ३. किं सा विसेस-महिला वलक्खइएल्लिय -- वही २० । ४. चाइ भट्टो, मम भोजन स्पष्टं, तक्षको हं, न वासुकि- २१. ५. भो भो भट्टउत्ता, तुम्हें ण-याणाह यो राजकुले वृत्तांत-१५२.२