Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन रोहण पर्वत को रोहणद्वीप भी कहा गया है। सम्भव है, दक्षिण-पूर्व एशिया में कहीं इस नाम का द्वीप रहा हो, जहाँ से व्यापार करने में स्वर्ण की (अधिक लाभ) प्राप्ति होती हो । भौगोलिक सामग्री के अन्तर्गत इस पर विशेष विचार किया जा चुका है।
खान्यवाद-उपर्युक्त साधनों के अतिरिक्त कुवलयमालाकहा में खान्यवाद द्वारा भी धन प्राप्त करने का उल्लेख है। सागरदत्त जब इच्छित धन कमाने में असमर्थ हो जाता है तो अपना जीवन नष्ट करने को सोचता है। तभी उसे मालूर का वृक्ष दिखायी पड़ता है। उसे देखकर नयी-नयी सीखी गयी खान्यविद्या सागरदत्त को याद हो आती है। वह इस विद्या से सम्बन्धित सभी बातों पर विचार कर यथेष्ट धन प्राप्त कर लेता है। इस वर्णन-प्रसंग में खान्यवाद से सम्बन्धित निम्नांकित जानकारी प्राप्त होती है।
१. खन्यवाद विद्या शिक्षण का विषय थी। २. क्षीरवक्ष के अतिरिक्त अन्य वृक्ष के साथ यदि माले (मालर) की
वेल (वृक्ष) हो तो अधिक धन होता है, अन्यथा कम । ३. विल्व और पलाश के वृक्ष के नीचे तो निश्चित ही धन होता है। . ४. वृक्ष यदि पतला हो तो धन थोड़ा एवं मोटा हो तो वहुत धन
होता है। ५. वृक्ष का रंग कृष्ण होने पर बहुत एवं उजला होने पर कम धन
होता है। ६. वक्ष को खोदने पर यदि रक्त आभा निकले तो रत्न, दूध निकले तो
चाँदी एवं पीली प्रभा निकले तो स्वर्ण नीचे छिपा होता है। ७. वृक्ष जितना जमीन के ऊपर लम्बा होगा, धन उतना ही नीचे छिपा
होगा। ८. यदि वृक्ष की शाखाएँ पतली एवं तना स्थूल होगा तो उस धन की
प्राप्ति सम्भव है, अन्यथा नहीं। ९. देवताओं की आराधना द्वारा वृक्ष की जड़ खोदी जाती थी।' १०. धन प्राप्त करने के बाद शेष धन पाताल में अदृश्य हो जाता था।
साधनों की प्रतीकात्मकता-धनोपार्जन के उपर्युक्त साधनों के लौकिक प्रयोग तत्कालीन समाज में अवश्य प्रचलित रहे होंगे। उनसे धन की प्राप्ति भी होती रही होगी। किन्तु कभी निराश भी होना पड़ता होगा। इसीलिए उद्योतन ने इन सभी साधनों को धार्मिक-प्रतीकों द्वारा समझाया है, जिससे असार धन के
१. एक्कस्स मालूर-पायवस्स–दे खणामि, देवं णमामो त्ति । –कुव० १०४.२१,
२. णिही वि झत्ति पायाले अइंसणं गओ। -वही १०५.२.