Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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वाणिज्य एवं व्यापार
१८९ ५. दक्षिणापथ की यात्रा करना कठिन था। अतः व्यापारी पिता
सम्भावित कठिनाइयों से पुत्र को अवगत कराते हुये उनसे बचने के
कुशल उपाय बताता था तथा यात्रा की अनुमति देता था।' ६. यात्रा-प्रारम्भ करने के पूर्व इष्ट देवताओं की आराधना की जाती थी। ७. आवश्यक सामान साथ में लिया जाता था।' ८. अन्य व्यापारियों को सूचना देकर सलाह ली जाती थी। ९. यदि पूजी न हो तो प्रथम पूजी की व्यवस्था की जाती थी।" १०. कर्मकरों को इकट्ठा किया जाता था। ११. अनेक नदी-पर्वतों, अटवियों को लाँधकर तब कहीं वणिकपुत्र गन्तव्य
स्थान पर पहुँचते थे।" दक्षिणापथ के रास्ते में जो विन्ध्या अटवी से होकर गुजरता था, व्यापारियों को शबर डाकुओं का अधिक भय रहता था। कुव० के मायादित्य एवं स्थाणु चोरों के भय से
अपना वेष परिवर्तन कर वहाँ से गुजरते हैं।' मंडियों में व्यापारियों का स्वागत-कुव० के वर्णन से ज्ञात होता है कि सोपारक मण्डी के स्थानीय व्यापारियों का एक मण्डल (श्रेणी) था, जिसमें यह रिवाज था कि जो कोई विदेशी व्यापारी या स्थानीय व्यापारी व्यापार के लिए जिस किसी देश में गया हो, वहाँ जो वस्तु उसने बेची हो या खरीदी हो और जो लाभ-हानि उसको हुई हो उस सबका विवरण इस मण्डल में आकर सुनाये । मण्डल की ओर से गन्ध, तम्वोल, पुष्पमाल आदि के स्वागत को स्वीकार करे तब बाद में अपने देश को वापस जाय । यह रीति व्यापारियों के पूर्वजों के समय से
१. पुत्त, दूरं देसंतरं, विसमा पंथा, णिठुरो लोओ, बहुए दुज्जणा""ता सव्वहा
कहिंचि पंडिएणं, कहिंचि मुक्खणं "भवियव्वं सज्जण दुज्जणाण पुत्त समं ।
-वही० ६५.१५, १९. २. कय-मंगलोवयारा। -५७.२८. ३. गहियाई पच्छयणाई ५७.२८, ६५.१३. ४. चित्तविया अडियत्तिया ६५.१३. . ५. कयमणेण भंड-मोल्लं । इमेणं चेय समज्जिउ समत्थो-हं सत्त-कोडीओ।
-१०५.५. संठविओ कम्मयर-जणो। -६५.१४. अणेय-गिरि-सरिया-सय संकुलाओ अडइओ उलंधिऊण कह कह वि पत्त पइट्ठाणं णाम णयरं ।-५७.२८. समराइच्चकहा, पृ० ५११, ६५५; कुव० ६२. एयं च चोराइ-उवद्दवेहिं ण य णेउं तीरइ सएस-हुत्तं । -कुव० ५७.३१. कयं च हिं वेस-परियत्तं (५८.१).