Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
उत्खनन में प्राप्त सामग्री के आधार पर डी० सी० सरकार ने काकन्दी की पहचान मुंगेर जिला के सिकन्दरा पुलिस स्टेशन के क्षेत्र में काकन नामक स्थान से की है। किन्तु कुछ विद्वान् उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले में नोनखार स्टेशन से तीन मील दक्षिण में दूर खुखन्दू नामक ग्राम से काकन्दी की पहचान करते हैं, जहाँ प्राचीन जैन मंदिर भी है एवं उत्थनन में प्राचीन वस्तुएँ प्राप्त हुई है ।
कांची (४५.१६, १३५.५)-दमिलों के देश में कांची नगरी थी, जो पृथ्वी की करधनी के समान स्वर्णनिर्मित प्राकारों से युक्त थी (४५.१६)। दमिलों के देश की पहचान तमिल प्रदेश से की जाती है। अतः कांची दक्षिण भारत की प्रमुख नगरी थी। विन्ध्याटवी से कांचीपुरी तक व्यापारियों के साथ जाया करते थे। आधुनिक कांजीवरम् को प्राचीन कांची माना जाता है ।
कोशाम्बी-कूव० में कोशाम्बी नगरी का सबसे अधिक वर्णन किया गया है। पन्द्रह गाथाओं के इस वर्णन में कोशाम्बी को अलका और लंकापुरी के सदश वतलाया गया है (३१.३०,३१)। कोशाम्वी की रचना प्राचीन नगरविन्यास के अनुरूप हुई थी। यह वत्स जनपद की राजधानी थी। कोशाम्बी की पहचान इलाहाबाद के पश्चिम में करीव वीस मील दूर यमुना के किनारे स्थित कोसम नामक स्थान से की जाती है।"
चम्पा (१००.१६, १०३.३ आदि)-जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में दक्षिणमध्यखण्ड में चम्पा नाम की नगरी थी, जो धवलगृह, तोरण, कोट आदि से युक्त थी। कुव० के प्रसंग से ज्ञात होता है कि काकन्दी से एक योजन दूर कोसम्व वन था। तथा उस वन से एक कोस पर चम्पापुरी थी। वर्तमान में भागलपुर के पास चम्पा की स्थिति मानी जाती है।
जयन्तीपुरी (१८३.१९)-कुमार कुवलयचन्द्र को विवाह के बाद विजयपुरी में जयन्तीपुर के राजा जयन्त ने एक छत्ररत्न भेंट में भेजा था (१८३.१८, १९) । इससे ज्ञात होता है कि विजयपुरी के समीप ही दक्षिण भारत में जयन्तपुरी स्थित रही होगी। ग्रादिपुराण में विजयाध की दक्षिण-श्रेणी में ३१वें नम्बर
१. स०-स्ट० ज्यो०, पृ० २५४. २. जै०-यश० सां० अ०, पृ० २८४. ३. भट्ट, एस विंझपुराओ आगओ कंचीउरि वच्चीहि, कुव० १३५.५. ४. क०-ए० ज्यो०, पृ० ६२८. ५. क०- ए० ज्यो०, पृ० ७०९. ६. इहेव जम्बुद्दीवे भारहवासे दाहिण-मज्झिमखंडे चम्पा णाम णयरि-कुव० १०३.३. ७. अत्थि इओ जोयणप्पमाण भूमिभाए कोसंबणाम वणं-२२३.६. ८. ताओ गोसे च्चेय चंपाउरि उवगओ--२२४.६. ९. रि०-बु० ई०, पृ० ३५.