Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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बृहत्तर भारत
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रत्नद्वीप (६६.४, ८८.३१ ) - सोपारक के एक व्यापारी ने अपना अनुभव सुनाते हुये कहा कि वह नींम के पत्ते लेकर रत्नद्वीप गया था और वहाँ से रत्न कमा कर लौटा । रत्नद्वीप की यात्रा बड़ी कष्टप्रद थी ( ६६.९) । पाटलिपुत्र से भी रत्नद्वीप को व्यापारी जाते थे ( ८८.३१) |
प्राचीन भारतीय साहित्य में रत्नद्वीप अनेक बार उल्लिखित हुआ है । " याधम्मका से ज्ञात होता है कि पटिसंतापदायक प्रदेश से तीन हजार एक सौ योजन दूर रत्नद्वीप स्थित था । किन्तु पटिसंतापदायक स्थान की खोज नहीं की जा सकी है। दिव्यावदान से ज्ञात होता है कि रत्नद्वीप जाने में जो समुद्र पड़ता था वह बहुत भयंकर था । बड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था । यही बात उद्योतन ने कही है। दिव्यावदान के रत्नद्वीप की पहचान सिंहल से की गयी है । अतः कुव० का रत्नद्वीप भी सिंहल के लिए ही प्रयुक्त हुआ प्रतीत होता है ।
समय से लेकर मार्कोपोलो
रत्नद्वीप कीमती रत्नों के लिए अर्थशास्त्र के की यात्रा विवरण के लिखे जाने तक प्रसिद्ध रहा है। वहां के एक रत्न की कीमत अन्य स्थानों पर बहुत अधिक होती थी । इसलिए इस द्वीप का नाम जापानी शब्द 'सेल' पर आधारित है, जिसका अर्थ कीमती रत्न होता है, इसी 'सेल' का भारतीय साहित्य में 'रत्नद्वीप' अनुवाद किया गया है, जिसे चीनी भाषा में पा-ओ-ट-चु ( Pao-t-chu) कहते हैं । तथा संस्कृत भाषा में 'सेल' का सिंहल हो गया है ।" इसी प्रकार रत्नद्वीप की पहचान सिंहल से करना समीचीन है ।
बारवई (६५.३१ ) - सोपारक से एक व्यापारी वारवई गया और वहां से शंख लाया । बारवई किसी समुद्रीतट पर स्थित था, जहां शंख बहुतायत से मिलते होंगे । डा० अग्रवाल ने बारवइ को द्वारावती कहा है, किन्तु डा० बुद्धप्रकाश ने इसकी पहचान दक्षिण भारत में स्थित 'बरुवारी' से की है,
१. अहं गओ रयणदीवं णिबपत्ताइं घेत्तूण, तत्थ रयणाई' लढाई, ताई घेत्तूण समागओ - कुव० ६६.४.
२. पउमचरियं ३२.६१; णायाघम्मका ९, पृ० १२३; वसुदेवहिण्डी, पृ० १४९; दिव्यावदान, पृ० २२९-३०, हरिवंश, २, ३८.२९; बृहत्कथाकोश, ५२.६ आदि ।
३.
मो०- सा०, पृ० १४८.
४. रयणद्दीवम्मि गओ गेण्हइ एक्कं वि जो महारयणं ।
तं तस्स इहाणीयं महग्घमोल्लं हवई लोए ॥ - पउमचरियं, ३२.६१
५. बु० - इ०ब०, पृ० ११२
६. अहं बारवइ गओ, तत्थ संखयं समाणियं - कुव० ६५.३१