Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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बृहत्तर भारत
लड़की खरीदी। उसे छह माह तक खिलाया-पिलाया और बाद में उसका खून निकाल कर उसका किरमदाना (कृमिराग) बनाया, जिससे कपड़े रंगे जाते थे। अब्बासीयुग के लेखक जाहिस के अनुसार किरमदाना स्पेन, तारीम और फारस से आता था।' इन उल्लेखों से स्पष्ट है कि कृमिराग-प्रक्रिया का प्रचलन पश्चिम एशिया में अधिक था। किन्तु कुव० के इस उल्लेख से ज्ञात होता है कि रत्नद्वीप और सोपारक के बीच में पड़ने वाले तारद्वीप में भी कृमिराग-प्रक्रिया का प्रचलन हो गया था।
तारद्वीप की शाब्दिक समानता 'तारीम' से की जा सकती है, जो मध्यएशिया की प्रसिद्ध नदी थी, जिसे भारतीय साहित्य में सम्भवतः सीता नदी कहा गया है। तारीम नदी के किनारे पर स्थित शहर भी 'तारीम' नाम से विख्यात था, जो शीराज के पूर्व में एवं आर्मेनिया से कुछ दूर पड़ता था। भारतीय व्यापारी 'तारीम' होकर मध्यएशिया के विभिन्न स्थानों पर जाते थे। किन्तु कुव० के यात्रा-वर्णन से इसका कोई सम्बन्ध नहीं बैठता। अतः तारद्वीप की अन्य पहचान करनी होगी। तारद्वीप 'तारणद्वीप' का भी संक्षिप्तरूप हो सकता है, जो कन्याकुमारी के आस-पास स्थित था। सम्भवतः यह तारद्वीप लक्ष्यद्वीप या मलयद्वीप के आस-पास रहा होगा, जहाँ रत्नद्वीप से सोपारक को लौटते समय व्यापारी भटक कर जा सकता है।
दक्षिण-समुद्र (१०४.८)-चम्पानगरी से दक्षिणपथ द्वारा दक्षिणसमुद्र के तीर पर स्थित जयश्री नगरी को व्यापारी जाते थे (१०४.८)। दक्षिणसमुद्र के किनारे श्रीतुंगा नाम की नगरी थी। तथा दक्षिण-समुद्र के किनारे ही विजयपुरी नाम का विषय था। कुव० के इन उल्लेखों से ज्ञात होता है कि उद्योतनसूरि ने वर्तमान भारतवर्ष के दक्षिण में स्थित समुद्र का उल्लेख किया है । यद्यपि दक्षिणसमुद्र नाम का एक समुद्र एशिया में अन्यत्र भी उपलब्ध होता है।
पारस (१५३.१२)-कुव० में पारस जाति का ही उल्लेख है (४०.२४), किन्तु व्यापारिक मण्डी में पारस देश के व्यापारी के उपस्थित होने का भी संकेत मिलता है (१५३.१२) । सातवीं-आठवीं सदी के भारतीय साहित्य में पारस देश व देशवासियों का पर्याप्त उल्लेख मिलता है। बादामी के चालुक्य राजा विनया
१. मो०-सा० पृ० २१६. २. बु०-इ० ब०, पृ० ३९-४० द्रष्टव्य । ३. मो०-सा०, पृ० २१६. ४. वही, पृ० १८३. ५. दाहिण-मयरहर-वेलालग्गा-सिरितुंगाणाम णयरी, १०७.१६. ६. दाहिण-मयरहर-वेलालग्गं विजयपुरवरी विसयं, १४९.५ ७. 'पउमचरिउ' (स्वयम्भु) ८२.६, 'आदिपुराण' (पुष्पदन्त), पृ० २३०.३९.