Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
शस्त्रास्त्रों के उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि उद्द्योतनसूरि ने कुवलयमाला में प्रायः उन सभी अस्त्रों का उल्लेख किया है, जो प्राचीन समय में युद्ध • क्षेत्र में प्रचलित तथा शिल्प और कला में अंकित थे ।
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रोग और उनकी परिचर्या
इस प्रकार उद्योतनसूरि ने कुवलयमाला में तत्कालीन समाज का चित्रण करते हुए जीवन के संहारक उपर्युक्त शस्त्रास्त्रों का उल्लेख करते हुए बतलाया है कि मनुष्य की मृत्यु या तो इन शस्त्रास्त्रों से होती है अथवा अनेक प्रकार के रोगों
आक्रान्त होकर वह मरता है । इस प्रसंग में उन्होंने अनेक रोगों के भी नाम गिनाये हैं तथा उनकी परिचर्या एवं निदान आदि का भी संकेत दिया है ।
कुवलयमाला में विभिन्न प्रसंगों में अरिसा (बवासीर)
उदररोग ( उपरेण भग्गो)
कर्णव्याधि (१६.१९)
इन रोगों का उल्लेख हुआ है अक्षीरोग (अच्छी- दुक्खेण ) कंठरोग (१८.१७)
खांसी (खासेण मओ) दंत वेदना (दंतविणाएँ) पोट्टसूल (२७४.१०) फोड़ी (फोडीए २७४.९ )
मारी (मारी = हैजा ) लूना (लूमा ए हो = वातरोग)
सन्निपात ( ११४.२७) सिर- वेदना ( सिर- वियणाएँ )
कुष्ट (कुण ग्रहं सडिओ, ५५.१५) जलोदर (४१.२८)
पुरीषव्याधि ( पुरीस वाहो )
फोड़ा (४१.२८)
भगन्दर (४१.२८)
रुधिरप्रवाह (२७४.८) विस्फोटक (विष-फोड़ा) सर्पदंश (भुजंग - डरको २३७.३) स्वासरोग (सोसेण सोसिय सरीरो)
इन रोगों की पहचान एवं इनके निदान के सम्बन्ध में कुवलयमाला में कुछ विशेष नहीं कहा गया है । इनसे मृत्यु सम्भव है, यह अवश्य सूचित किया गया है । भगन्दर, कुष्ठ, सन्निपात, विरेचन एवं सर्पदश के सम्बन्ध में कुव० में संक्षिप्त जानकारी दी गयी है ।
भगन्दर - कोई व्यक्ति भगन्दर रोग के द्वारा सम्पूर्ण शरीर में पीड़ा पाकर निधन को प्राप्त होता है । वैद्यक शास्त्र में भी भगन्दर को भयंकर रोग बताया
१. सिर दुह - जर वाहि भगंदराभिभूएहिं दुक्ख कलिएहि ।
सास- जलोदर - अरिसा-लूया - विप्फोड - फोडेहिं ॥ कुव० ४१.२८. सुह-दुक्ख-जर-भगंदर- सिरवेयण - वाहि खास सोसाई । - वही, १६२.३२. २. कत्थइ खामेण मओ' 'सूलेण णवर पोट्टस्स । वही, २७४, ५-१०. ३. कत्थइ भगंदरेण दारिय- देहो गओ णिहणं । - २७४.६.