Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन श्रमणों के विहार योग्य बनाया था। डा० जैन कुडक्क की पहचान आधुनिक कुर्ग से करते हैं।'
चंचय (४०.२५)-इनके निवासस्थान और जाति का ठीक पता नहीं है। डा० जामखेडकर चंचुय जाति की पहचान दक्षिण भारत की आधुनिक चेन्चुस जाति से करते हैं ।
मुरुंड (४०.२४)-कुव में मुरुड का उल्लेख म्लेच्छ जातियों के साथ हुआ है। भारतीय साहित्य में इसके और उल्लेख प्राप्त हैं। बृहत्कल्प में कहा गया है कि मुरुड नाम का राजा कुसुमपुर में राज्य करता था। समुद्रगुप्त के इलाहाबाद के प्रस्तर अभिलेख में कहा गया है कि उसने शक और मुरुडों को हराया था। संभव है, गुप्त युग के बाद आठवीं शदी में मुरुड जाति का अस्तित्व न रहा हो। उद्द्योतन ने किसी प्राचीन परम्परा के आधार पर इनका उल्लेख कर दिया हो।" अन्त्यज-जातियाँ
कुव० में उल्लिखित चाण्डाल, डोंब, शौकारिक, मत्स्यबन्धक, डोम्बलिक, मातंग, बोक्कस, पंशुलि, मेरिय एवं पक्कण जातियों को अन्त्यज-जातियों के अन्तर्गत रखा जा सकता है, जिन्हें उद्द्योतन ने अनार्य एवं धर्म, अर्थ, काम से रहित कहा है। ८वीं से ११वीं सदी तक के विभिन्न विद्वानों ने अपने ग्रन्थों में इन जातियों में से अधिकांश को अन्त्यज के अन्तर्गत माना है। ये जातियां प्रायः शहर से बाहर निवास करती थीं। इनमें से कुछ का परिचय इस प्रकार है :
डोंब--उद्द्योतन ने डोंब का उल्लेख कई बार किया है। एक प्रसंग में डोंब को पटह बजानेवाला कहा गया है, जिसके शब्दों से डोंब के बच्चे कभी भयभीत नहीं होते थे-कि कोइ डोंब-डिमो पडहय-सद्दस्स उत्तसइ ? (३८.२८)। अन्यत्र भी डोंब को गाना गाने वाला एवं बांस की टोकरियां बनाने वाला कहा गया है तथा ये घरों में रहते थे। डोंब की पहचान क्षीर-स्वामी ने श्वपच से की है। बृहत्कथाकोश में (१७.२६) डोंब को 'पाण' कहा है । जबकि इन दोनों में भेद था । 'पाण' चाण्डाल को कहा जाता था। वर्तमान में मध्य प्रदेश के वसोरों से डोंव की पहचान की जा सकती है।
१. ज०- जै० भा० स०, पृ० ४५८. २. जाम० कुव० क० स्ट, पृ० १२०. ३. बृहत्कल्पभाष्य (गा० २२९.९३, ४१२३.२६). ४. फ्लीट, भाग ३, पृ० ८. ५. जाम०-कुव० क० स्ट, पृ० १३२. ६. निशीथचूर्णी ४-१८१६ की चूर्णी। ७. श०-रा० ए०, पृ० ४३२.