Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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परिच्छेद तीन सामाजिक आयोजन
सामाजिक जीवन से उत्सवों एवं विनोद के आयोजनों का घनिष्ठ सम्बन्ध है। आयोजनों की बहुलता समाज की समृद्धि एवं सामाजिकों की अभिरुचि की परिचायक होती है। कुव० में उल्लिखित सामाजिक आयोजन गुप्तयुग एवं उत्तर गुप्तयुग के समृद्ध समाज के अनुकूल हैं। इस समय के राजाओं एवं रईसों का जीवनक्रम कुछ इस प्रकार का था कि उनकी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति विभिन्न उत्सवों द्वारा एवं विनोद-पूर्वक होती थी। आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक सामान्य जन भी अपने को उत्सव का भागीदार मानता था। अतः सामाजिक वातावरण आनन्द, उल्लास और उत्सवों के अनुकूल बन गया था। ये सामाजिक आयोजन उस समय की आर्य-संस्कृति में अधिक प्रचलित थे। उद्द्योतन ने निम्न सामाजिक आयोजनों का उल्लेख कर इस बात को पुष्टि की है।
जन्मोत्सव-सांसारिक आनन्द एवं उत्सवों में पुत्र-जन्मोत्सव का स्थान प्रमुख है। प्राचीन भारतीय साहित्य में पुत्र-जन्मोत्सव के अनेक सुन्दर वर्णन प्राप्त होते हैं। उद्योतनसूरि द्वारा प्रस्तुत वर्णन भी परम्परागत है। किन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से कुछ सूचनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। कुवलयचन्द्र का जन्म होते ही प्रसूतिगृह में अनेक प्रकार के कार्य सम्पन्न किये गये। मंगल-दर्पण-मालाओं को उतारा गया (१७.२७) । सम्भवतः यह बाण द्वारा कादम्बरी में प्रयुक्त अवतरणकमंगल का ही कोई रूप है, जिसे लोकाचार में उतारा कहा जाता है। बालक की मंगल-कामना के लिए इस प्रकार के उत्तारे किये जाते हैं। कोई चीज बालक के ऊपर से उतार कर किसी को दे दी जाती है।' पत्रलता द्वारा बालक की रक्षा के लिए सुन्दर सजावट की गयी-भूइ-रक्खा परिहरंतए (१७.२७) । बाण ने इसके लिए 'भूतिलिखित पत्रलताकृतरक्षापरिक्षेपम्' समास का प्रयोग किया
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अ०-का० सां० अ०, पृ० ७४.