Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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वस्त्रों के प्रकार ४५. साटक (१०४.२) ४६. सुणियत्थ-णियंसणं (७३.२२) ४७. सेज्जासंथार (२२०.४, ५, २७१.१२) ४८. सुवण्णचारिय (१८.२७) ४६. हंसगर्भ (२१.१७, ४२.३२)
इनमें से कुछ वस्त्रों का परिचय स्वयं उद्द्योतनसूरि ने दिया है। कुछ का परिचय तत्कालीन साहित्य एवं कला के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
अर्धसवर्णवस्त्रयुगल-राजा पुरन्दरदत्त मुनियों की परीक्षा के लिए रात्रि में जाते समय अर्धसवर्णवस्त्रयुगल को पहनता है।' यह वस्त्रयुगल का अर्घ भाग चन्द्रमा की भाँति धवल एवं आधा मयूर के कंठ एवं नील गाय की तरह श्याम रंग का था, जो कात्तिक मास के कृष्ण एवं शुक्लपक्ष की तरह शोभित हो रहा था। राजा ने काली किनारीवाले श्वेत अधोवस्त्र को पहन लिया एवं कालीचादर को ओढ़ लिया। यहाँ अर्धसवर्णवस्त्र का अर्थ है, ऐसा वस्त्र जो आधा श्वेत रंग का था और आधा काले रंग का। इसकी पहिचान अध्य(शुक से की जा सकती है, जिसमें ताना एक तार का होता था और बाना दो तारों का। इसी बुनायी के कारण एक भाग में उसका एक रंग होता होगा और दूसरे भाग में दूसरा रंग । 'धवलमद्धं-कसिणकार' का अर्थ है काली किनारी वाला श्वेत अधोवस्त्र । इस प्रकार के किनारी वाले वस्त्र पाठवीं सदी में खब प्रचलित हो गये थे। यह किनारी रंगों एवं स्वर्ण आदि से भी बनायी जाती थी। कसिणपच्छायणं का अर्थ काली चादर से है, जो एक प्रकार का दुकूल ही था। कमर से ऊपर ओढ़ने के काम आता था।
उत्तरीय-तत्कालीन एवं उसके पूर्व के साहित्य में उत्तरीय को ओढ़ने वाला वस्त्र माना गया है, जो दुकूल से वनता था। पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों के काम आता था। कुव० में स्त्रियों के उत्तरीय का दो बार उल्लेख हुआ है। दोनों बार उत्तरीय को स्तन ढकने वाला वस्त्र बतलाया गया है। कुमार कुवलयचन्द्र
१. राइणा पुरंदरदत्तेण गाहिअं अद्ध-सवण्णं वत्थ-जुवलयं ।-८४.८. २. अद्धं ससंक-धवलं अद्धं सिहि-कंठ-गवल-सच्छायं ।
पक्ख-जुवलं व घडियं कत्तिय-मासं व रमणिज्ज ।-वही, ९. ३. परिहरियं च राइणा धवलमद्धं कसिणायार-परिक्खित्तं ।
उवरिल्लयं पि कयं कसिण-पच्छायणं ।-वही, १०. ४. मो०-प्रा० भा० वे०, पृ० ५५. ५. वही, १५२, पर उद्धृत निसीथ, ७, ४६७. ६. संव्यानमुत्तरीयं च, अमरकोष, २.६.११८.