Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
अंधविश्वास
कुव० की कथाएँ लोकतत्त्वों से अधिक संश्लिष्ट है। स्वभावतः उनमें अंधविश्वासों की भरमार है । पुत्र-प्राप्ति के लिए यक्ष, राक्षस, भूत, पिशाच को पूजना (१२.२६), तन्त्र एवं मन्त्र की आराधना करना, जड़ी बांट कर पीना पिज्जति मूलियानो तथा बलि आदि देना (१६२.३, ५) कई अंधविश्वास प्रचलित थे। पुत्र के गुम जाने पर उसका पता लगाने के लिए एवं पुत्री की मति ठीक कराने के लिए अनेक जोगियों, नैमित्तकों एवं मन्त्र-तन्त्र वादियों की मातापिता आराधना करते फिरते थे (१५६.१, २२५.१३) ।
इसी प्रकार वैवाहिक एवं जन्मोत्सव आदि के अवसरों में विभिन्न प्रकार के मांगलिक कार्य भी किये जाते थे (१७०.३१) । कुव० में विभिन्न अवसरों पर वलि देने के भी उल्लेख मिलते हैं (१४.५, ५६.३३, १०४.१७, १६२.३, ४ एवं २०१.१९ आदि) । उद्योतन के समकालीन साहित्य में इस प्रकार के अंधविश्वासों की कमी नहीं है। बाण के ग्रन्थों एवं समराइच्चकहा में इनकी भरमार है । किन्तु अन्धविश्वास केवल अज्ञानता और मूढ़ता के ही प्रतीक नहीं हैं, अपितु तत्कालीन समाज में साधना की विभिन्न पद्धतियों के विकास के कारण भी इनकी संख्या बढ़ी है। कुछ कार्यों को मांगलिक मान कर ही किया जाता रहा है। यथा-शकुन-अपशकुन विचार (अनु० २८९), राशिफल अध्ययन के वाद नाम-संस्करण (पृ० १९,२०) एवं लग्नविचार (१७०.१०) आदि । महिलाओं के सैंकड़ों मांगलिक कार्य समाज में सम्पन्न होते रहते थे।' गांवों का सामाजिक-जीवन
कुव० में न केवल नागरिक जीवन का ही चित्रण हुआ है, अपितु ग्रामीण जीवन के भी विविध चित्र प्राप्त होते हैं । उद्योतनसूरि ने इस सम्बन्ध में निम्न जानकारी दी है :
विजयपुरी के समीप ही बड़े-बड़े गांव स्थित थे। महाग्रामों के बीच में वाण फेंकने के बराबर दूरी रहती थी। अतः लगभग दो फलांग के अन्तर से महाग्राम बसाये जाते थे। गांवों में एक-एक कदम की दूरी पर धवलगृह बनते थे। धवलगृहों के आगे वन-उद्यान लगाया जाता था। वन-उद्यान के बीच में नारियल आदि के वृक्ष लगे होते थे, नारियलों के वृक्षों के बाद सुपारी के वृक्ष लगते थे, जिनमें नागवल्ली की लताएँ लिपटी रहती थीं। इन-उद्यानों के बाद गहन जंगल प्रारम्भ हो जाता था, जहां सूर्य की किरणें भी मुश्किल से प्रवेश कर पाती थीं। ग्राम-रचना के इस प्रकार का वर्णन रायस् डेविड्स ने 'बुद्धिस्ट इंडिया' में किया है। किन्तु कुव० का यह वर्णन दक्षिण भारत के ग्राम-संगठन के अधिक अनुरूप है।
१. एय पि मये लिहियं कीय वि महिलाण मंगल-सोहि । _____ कीरइ से फल-ठवणं वज्जिर तूरोह-सद्देणं ।। १८७.१८ । २. बाण-खेवमेत्त संठिय-महागामु-दिणयर-कर-पवारो, कुव० १४९.६, ८।