Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
View full book text
________________
११८
कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन और पारसोकों की भिड़न्त का जो उल्लेख है', सम्भवतः वे तज्जिक ही रहे होंगे।
जयदत्त के अश्ववैद्यक एवं मानसोल्लास में भी ताजिकों का उल्लेख है। श्री चौहान ने इनकी पहचान करते हुए कहा है कि अरब के लोगों एवं अश्वों के लिए ताजिक शब्द प्रयुक्त होता था।२ ।
इनके अतिरिक्त रोम और पारसीक जातियाँ भारत में प्राचीन समय से आने-जाने लगी थीं। सिंहल, सीलोन के निवासियों को कहा गया है, जिनका भारत से बहुत पुराना सम्बन्ध रहा है। अरवाक, कोंच एवं चंचुय अनार्य देशों के निवासियों के नाम हैं। सम्भव है, इन नामों के देश भारत में ही तब सम्मिलित रहे हों।
भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता पाचन-शक्ति के कारण इन विदेशी जातियों का समिश्रण भारतीय समाज में धीरे-धीरे हो गया। आवश्यकता के अनुसार प्रमुख चार जातियों में उपजातियाँ बनती रहीं। युद्धकर्मा होने के कारण ये जातियाँ एक ओर तो क्षत्रिय वर्ण के अधिक समीप थीं और दूसरी ओर अनार्य होने के कारण ये शूद्र कोटि में रखी जा सकती थीं। अतः इनका वर्गीकरण या भारतीयकरण इन्हीं दो वर्गों में मुख्यतः हुआ।
उपर्युक्त जाति-समूहों के अतिरिक्त कुव० में हयमुख, गजमुख, खरमुख, तुरगमुख, मेंढकमुख, हयकर्ण, गजकर्ण आदि अनार्य जातियों के भी उल्लेख हैं। सम्भवतः आर्यों से इनकी आकृति भिन्न होने के कारण इस तरह के नामों से उन्हें व्यवहृत किया गया है। इन्हें टोटेमिस्टिक ट्राइव (Totemistic Tribes) कहा जा सकता है। इन जातियों में से अधिकांश काल्पनिक हैं । इनके नामों की परम्परा मेगस्थनीज़ के समय से प्रारम्भ हुई प्रतीत होती है।
कुव० में वर्णित उपर्युक्त विभिन्न जातियों के स्वरूप एवं कार्य को देखते हए प्रतीत होता है कि इस समय तक धर्म के आधार पर जातियों का विभाजन स्पष्ट नहीं हुआ था। हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिक्ख, ईसाई आदि जातियों के समूह न होकर समस्त जातियाँ आर्य और अनार्य रूप में विभक्त थीं। भारतीय संस्कृति से अनुप्राणित एवं भारत में जन्मो जातियाँ आर्य तथा इससे भिन्न संस्कृति का अनुगमन करनेवाली और विदेशी जातियाँ अनार्य कही जाती थीं। यद्यपि इनमें परस्पर आवागमन होने लग गया था।
१. गउडवहो, सम्पादित-एस० पी० पंडित, पृ० १२६, गाथा -३९. २. चौहान, ए० ब० ओ० रि० इ०, भाग XLVIII एवं XLIX, पृ० ३९१-३९४. ३. पाण्डेय, विमलचन्द्र, भारतवर्ष का सामाजिक इतिहास, पृ० ५०. ४. किक्कय-किराय हयमुह-गयमुह खर-तुरय-मेंढगमुहा य।
हयकण्णा गयकण्णा अण्णे य अणारिया बहवे ॥-कुव० ४०.२६. ५. कान्तावाला, एस० जी०--'ज्योग्राफिकल एण्ड एथनिक डेटा इन मत्स्यपुराण'
पुराणम्, भाग ५, नं०१ में 'अश्वमुख' की पहचान ।