Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
View full book text
________________
१०२
कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन कर्म प्रतिपादित था, व्यवहार में उससे भिन्न कर्मों में विभिन्न वर्ण लगे हुए थे। उदाहरण के लिए यज्ञसोम नामक ब्राह्मण-बटुक निर्धन और बेसहारा होने के कारण जूठन साफकर अपनी जीविका चलाता था (११८.३) तो दूसरी ओर धनदेव शूद्र होते हुए भी व्यापार में कुशल था तथा व्यापारी-मण्डल में उसकी प्रतिष्ठा थी (६५.२) । इससे यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि स्मृति के अनुरूप वर्ण-व्यवस्था का स्वरूप उद्द्योतनसूरि को व्यवहारतः मान्य नहीं था । उनकी यह कथा इस प्रकार आदर्श का ही चित्रण न होकर समाज का वास्तविक चित्र उपस्थित करती है।
कुव० के प्रमुख पात्र समाज के प्रमुख वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं । जन्म से चण्डसोम ब्राह्मण, मानभट क्षत्रिय, मायादित्य वैश्य, लोभदेव शूद्र तथा मायादित्य राजकुमार था। इन प्रमुख चार वर्षों के सम्बन्ध में लेखक ने अन्यान्य प्रसंगों में भी जानकारी दी है। विशेष विवरण इस प्रकार है :
ब्राह्मण
उद्योतनसूरि ने ब्राह्मणों का उल्लेख इन प्रसंगों में किया है। राजा दृढ़वर्मन् के दरबार में स्वस्तिक पढ़नेवाले ब्रह्मा सदृशं महाब्राह्मण' तथा शुक्र सदश महापुरोहित उपस्थित रहते थे। राजा ने देवी से वर प्राप्त कर विप्रजनों को दक्षिणा दी (दक्खिऊण विप्पयणं-१५.१६)। कुवलयचन्द्र के जन्म-नक्षत्र और ग्रहों को देखने के लिये सम्बत्सर (१९.४) को बुलाया गया, जिसे दक्षिणा में सात हजार रुपये दिये गये (२०.२६)। चंडसोम, जन्म-दरिद्री सुशर्मदेव द्विज का पुत्र था (४५.२१) । यौवन-सम्पन्न होने पर उसका विवाह ब्राह्मणकुल (बंभणकुलाणं) की ब्राह्मण-कन्या से कर दिया गया (४५-२५) । चंडसोम ब्राह्मणों की वत्ति करते हुए (कय-णियय-वित्ती) उसका पालन करने लगा। चंडसोम अपने भाई एवं बहिन की हत्या कर देने के कारण जब आत्मघात करने लगा तो अनेक शास्त्रों के ज्ञाता श्रोत्रिय पंडितों (सोत्तिय-पंडिएहि, ४८.१७) ने उसे प्रायश्चित करने के लिए कहा । किसी ने कहा कि ब्राह्मणों को स्वयं समर्पित कर देने से शुद्ध हो जाओगे।' दूसरे ने सुझाव दिया कि अपनी पूरी सम्पत्ति ब्राह्मणों को दान कर (सयलं घर-सव्वस्सं बंभणाणं दाऊण, (४८.२३) गंगा स्नान को चले जाओ।
अन्य प्रसंगों में ब्राह्मणों के निम्नोक्त उल्लेख हैं:-धनदेव के पिता ने उसे ब्राह्मणों को दक्षिणा देने को कहा (दक्खेसु बंभणे, ६५.६)। समुद्रयात्रा प्रारम्भ करते समय ब्राह्मणों ने आशीषं पढ़ीं (पढंति बंभण-कुलाई आसीसा, ६७.६, १०५.३१) । समुद्री तूफान के समय व्यापारियों ने ब्राह्मण-भोज (बंभणाणं भोयणं,
१. सत्थिकारेंति चउवयण-समा महाबंभणा, १६.२०. २. पविसंति सुक्क-सरिसा महापुरोहिया, १६.२१. ३. ब्राह्मणानां निवेद्यात्मा ततः शुद्धो भविष्यति, ४८.२०.