Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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नगर
७१ होने के कारण लंकापुरी सदृश थी।' महाचिंतामणि-पल्लि शूरपुरुषों के द्वारा लंकापुरी सदृश शोभित हो रही थी। 'सूर' पउमचरिय में लंकाधिपति का नाम बताया गया है। विजयपुरी धीर-पुरुषों की उपस्थिति के कारण लंकापुरी सदृश थी, किन्तु वहाँ राक्षसकुल विचरण नहीं करते थे।
उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि लंकापुरी भारत के दक्षिण में स्थित सिंहल अथवा सीलोन के प्रदेश को कहा गया है, जहाँ जहाज द्वारा आवागमन होता था और राक्षसों के निवासस्थान के लिए प्रसिद्ध था। यद्यपि लंकापुरी की पहचान, अमरकंटक पर्वत के पास या आसाम का प्रदेश अथवा मध्यभारत से भी की गयी है, किन्तु डा० बुद्धप्रकाश ने अन्य स्रोतों के आधार पर लंकापुरी को आधुनिक श्रीलंका से ही सम्बन्धित माना है।
वाराणसी (५५.१५)-मथुरा के अनाथमण्डप में यह प्रसिद्धि थी कि वाराणसी जाने से कोढ़रोग दूर हो जाता है-'वाणारसीहिं गयहं कोढो फिट्टइ' (५५.१५) । वाराणसी काशी जनपद की प्रमुख नगरी थी (५६.२९) तथा अनेक कलाओं और चाणक्यशास्त्र के अध्ययन का केन्द्र थी (५६.२८) । इन सबके अतिरिक्त उन दिनों भी वाराणसी में ठगों द्वारा धमकाने की प्रसिद्धि थी (५७.१५,१६) । वाराणसी के राजनीतिक, व्यापारिक, वौद्धिक एवं धार्मिक इतिहास के सम्बन्ध में अल्टेकर एवं मोतीचन्द्र आदि विद्वानों ने विशेष प्रकाश डाला है।
विजयानगरी (११०.८, १४६.१९, १७७.१६)-उद्योतनसूरि ने विजयानगरी (पुरवरी या पुरी) का जो वर्णन किया है उससे ज्ञात होता है कि (१) अयोध्या से दक्षिणापथ में विजयपुरी थी, (२) विन्ध्याटवी, नर्मदानदी एवं सह्यपर्वत पारकर वहाँ पहुँचा जा सकता था, (३) दक्षिण समुद्र के किनारे तक विजयपुरी का प्रदेश था,' (४) द्वारकापुरी सदृश विजयपुरी समुद्र से घिरी हुई
१. सप्पायार सिहर-दुलंघा य लंकाउरि-जइसिया, ११८.१८. २. लंकाउरि व रेहइ सा पल्ली-पुरिसेहिं, वही १३८.१४. ३. वि०-५० च०, पृ० ५-२६३. ४. जाय लंकाउरि जइसिय धीर-पुरिसाहिठ्ठिय ण उण वियरतं रक्खाउल,
१४९.२२. Lankápuri is generally identified either with a peak in Amarakantaka mountain or a place in Assam, Central India are Ceylon.
-B. AIHC. P. 282. (Note). 'Raksasadvipi'-B. IAW. P. 105-124. ७. अल्टेकर-हिस्ट्री आफ बनारस, मोतीचन्द्र-काशी का इतिहास, एवं रा०
प्रा० न०, पृ० १२१.३२ द्रष्टव्य । ८. दक्खिणावहे विजयाणामाए पुरवरीए, कुव० ११०.८. ९. दाहिण-पयरहर-वेला-लग्गं विजयापुरवरी विसयं-१४९.५.
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