Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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बृहत्तर भारत सीराफ से जहाज जब तियोमा के टापू में पहुँच कर प्रस्थान करता था तो उसे आगे चलकर कुद्रंग में रुकना पड़ता था, कुडंग से चम्पा, चम्पा से सुन्दूर-फलात और अन्त में सुन्दूरफूलात से पोते-व-ला चीन की खाड़ी से खानफ या कैन्टन जहाज पहुँचता था। इस यात्रा में पांच महीने लगते थे । डा० सा० ने कुंद्रंग को सांजाक की खाड़ी में सेगाँव नदी के मुहाने पर स्थित माना है।' सम्भव है, इस कुंद्रंग एवं कुवलयमाला के कुडंग में कोई समानता रही हो। मलयप्रायद्वीप (सिंगापुर) के जलडमरुमध्य में कुंडूरद्वीप (kundurdvip) नाम का एक द्वीप है। कुव० के यात्रा वर्णन से इसका निकट सम्बन्ध है। अत: इसे कुडुंगद्वीप स्वीकार किया जा सकता है।
खस (१५३.१२)-दक्षिण भारत में स्थित विजयपुरी की व्यापारिक मण्डी में अन्य देशों के व्यापारियों के साथ खस, पारस और बव्वर भी उपस्थित थे, जो अपने देशों से यहाँ व्यापार करने आये होंगें। उद्द्योतनसूरि ने अनार्य जाति के अन्तर्गत खस जाति का भी उल्लेख किया है, जिसका परिचय सामाजिक स्थिति वाले अध्याय में दिया जायेगा। खस प्रदेश की पहिचान विद्वानों ने विभिन्न स्थानों से की है। सामान्यतया सेण्ट्रल एशिया में दरदिस्थान और चीन की सीमाओं के बीच के प्रदेश को खस कहा जाता है। डा० बुद्धप्रकाश ने खस जाति एवं उनके निवासस्थान पर विशेष प्रकाश डाला है।'
चन्द्रद्वीप (१०६.१६)-सागरदत्त दक्षिण भारत में स्थित जयश्री नाम । की महानगरी से परतीर के व्यापार के लिए चला। उसका जहाज नदीमुख से समुद्र में प्रविष्ट हुआ-ढोइनो गइ-मुहम्मि पडिओ समुद्दे (१०५.३३)। तथा कुछ समय बाद वह यवनद्वीप पहुंचा। यवनद्वीप में व्यापार करने के बाद जब वह वापस लौटने लगा तो समुद्र में तूफान आ गया, जिससे उसका जहाज नष्ट हो गया। वह किसी प्रकार समुद्री जीवों से अपनी रक्षा करता हुआ पांच दिन-रात्रि में चन्द्रद्वीप नाम के द्वीप में जा लगा। चन्द्रद्वीप में भूख से व्याकुल हो जब वह घूम रहा था तो उसने देखा कि उस द्वीप में बकुल, एला का सुन्दर वन है, निर्मल कर्पूर फैला हुआ है, द्वीप की शोभा नन्दनवन पर हँस रही है, किन्नर गा रहे हैं, भ्रमर एवं पक्षियों के समुदाय गुंजन कर रहें हैं तथा वहाँ के वृक्षों की छाया इतनी सघन है कि सूर्य की किरणें भूमि पर नहीं पहुँच पाती है (१०६.२२,२३)। सागरदत्त ने उस द्वीप में नारंगी, फणस, मातुलंग आदि फल खाकर भूख मिटाई तथा चन्दन, एला एवं लवंग के लतागृह में विश्राम करने के लिए चल पड़ा (१०६.२४-२५)। इस चन्द्रद्वीप पर दक्षिण-समुद्र के किनारे
१. मो०-सा० पृ० २०४-२०५ २. अण्णइय पुलएइ खस-पारस-बब्वरादीए-कुव० १५३.१२. ३. बुद्धप्रकाश-पो० सो० पं०, पृ० २०९. ४. पंचहिं अहोरत्तेहिं चंदद्दीवं णाम दीवं तत्थ लग्गो-कु० १०६.१६.