Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
पर स्थित श्रीतुंगा ( जयतु रंगा) नगरी की वणिक् कन्या का अपहरण कर एक विद्याधर भी उससे रमण करने के लिए एकान्त प्रदेश समझकर उतरा थाएत्थ उमहि- दीवंतरे णिप्पइरिक्के समागओ (१०७-३२) ।
इससे ज्ञात होता है कि चन्द्रद्वीप यवनद्वीप और दक्षिण समुद्र के बीच में कहीं पड़ता होगा । 'कोलज्ञाननिर्णय' नामक ग्रन्थ से ज्ञात होता है कि नाथसम्प्रदाय के मत्स्येन्द्र नाथ ने अपने मत का प्रचार चन्द्रद्वीप में रह कर कामरूप में किया था। पी०सी० बागची ने इस चन्द्रद्वीप की पहचान बंगाल के डेल्टा प्रदेश में स्थित सूर्यद्वीप ( Sundvip ) से की है ।" डी० सी० सरकार ने गोविन्द्रचन्द्र के अभिलेखों आधार पर चन्द्रद्वीप और बंगाल देश में समानता प्रगट की है। आधुनिक बकरगंज जिला का कुछ भाग, जो बाकल :- चन्द्रद्वीप कहलाता है, प्राचीन चन्द्रद्वीप का द्योतक है । २
बंगालदेश में चन्द्रद्वीप की स्थिति मानने पर हो सकता है, उद्योतनसूरि ने जिस सघनवन का वर्णन किया है वह बंगाल के पास का सुन्दरवन हो । यहाँ यवनद्वीप का अर्थ यवन प्रदेश नहीं है । क्योंकि पूर्व देश में स्थित इस चन्द्रद्वीप और पश्चिम में स्थित यवन प्रदेश में कोई सम्बन्ध नहीं बनता । अतः कुव० का यह यवनद्वीप 'जावा' के लिए प्रयुक्त हुआ है, जिसके रास्ते में बंगाल का चन्द्रद्वीप पड़ सकता है और उसके लिए दक्षिण भारत के समुद्र से यात्रा भी प्रारम्भ की जा सकती है ।
चीन - महाचीन ( ६६. २ ) - सोपारस का कोई व्यापारी भैसे एवं गवल लेकर चीन तथा महाचीन गया था । वहाँ से गंगापटी तथा नेत्रपट नामक वस्त्र लाया, जिससे उसे बहुत लाभ हुआ । " गंगापटी एवं नेत्रपट के सम्बन्ध में आगे जानकारी दी गई है। चीन एवं महाचीन का परिचय इस प्रकार है :
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उक्त संदर्भ से ज्ञात होता है कि सम्भवतः व्यापारी भैंसे लेकर चीन गया और वहाँ से गंगापटी लाया तथा गवल लेकर महाचीन गया और वहाँ से नेत्रपट लाया । इस प्रकार चीन और महाचीन दो देशों के लिए प्रयुक्त पद है । प्रायः चीन - महाचीन को एक समझ लिया जाता है, किन्तु इन दोनों शब्दों का इतिहास इन्हें दो देशों के लिए प्रयुक्त बतलाता है । तिब्बत के सीमावर्ती जो पहाड़ी राज्य थे उन्हें सीन ( shina ) कहा जाता था । भारतीय
१. बा० - कौ० नि० इण्ट्रोडक्शन, पृ० ३१ ३२.
२.
स० - स्ट० ज्यो०, पृ० १२५.
३. भारतकौमुदी, भाग १ में बागची का निबन्ध द्रष्टव्य ।
४.
द्रष्टव्य – लेखक का कुत्र० में उल्लिखित कुडंग, चन्द्र एवं तारद्वीप नामक लेख - श्रमण, १९७२.
५. अहं चीण - महोचीणेसु गओ महिस गवले घेत्तूण, तत्थ गंगावडिओ णेत्तपट्टाइयं घेत्तूण लद्धलाभो णित्तो — ६६-२.