Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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परिच्छेद चार बृहत्तर भारत
उद्द्योतनसूरि ने कुवलयमालाकहा में कुछ ऐसे देशों का भी नामोल्लेख किया है, जो भारतवर्ष की सीमा से बाहर थे। भारतीय व्यापारी उन देशों की यात्रा किया करते थे। बाहरी देशों में भारतीय संस्कृति के विस्तार की लम्बी कहानी है। परन्तु ७वीं शताब्दी में अन्य देशों के साथ आर्थिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्ध बढ़ जाने के कारण अन्य देशों के साथ भारत का सम्बन्ध घनिष्ठ होने लगा था। भारतीय संस्कृति के प्रभाव के कारण भारत के अनेक पड़ोसी देशों को विद्वानों ने 'बृहत्तर भारत' नाम से सम्बोधित किया है।' इस सन्दर्भ में कुवलयमालाकहा में बृहत्तरभारत के निम्नोक्त देशों व स्थानों का उल्लेख हुआ है :
उत्तरकुरु (२४०.२२)-कामगजेन्द्र ने अपरविदेह में जाकर वहाँ के बड़े-बड़े मनुष्यों, पशुओं एवं वस्तुओं को देखकर सोचा कि वहीं वह उत्तरकुरु में तो नहीं पा गया है--'णाणुत्तर-कुरवो' (२४०.२२)? जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों ही मान्यताओं के आधार पर उत्तरकुरु में भोगभूमि मानी जाती है, जहाँ के मनुष्यों का जीवन निश्चिन्त और सुखमय होता है ।२ महाभारत के अनुसार उत्तरकुरु की स्थिति सुमेरु से उत्तर और नीलपर्वत के दक्षिणपार्श्व में थी।
दिपुराण और हरिवंशपुराण के अनुसार उत्तरकूरु यारकन्द या जरफ़शा नदी के तट पर होना चाहिए। राजतरंगिणी में इसे स्त्रीराज्य के बाद स्थित बतलाया है।
१. चन्द्रगुप्त वेदालंकार-'बृहत्तरभारत'; वेल्स-'दी मेकिंग आफ ग्रेटर इण्डिया। २. उ०-बु० भू०, पृ० ६७. ३. शा०-आ० भा०, पृ० ४३. ४. क०-राज०, ४-१७५.