Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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नगर . . विनीता भी कहा है, क्योंकि वहाँ विनीत पुरुषों का निवास था।' अयोध्या का सम्बन्ध इक्ष्वाकुवंश के राजाओं से प्राचीन समय से रहा है, उद्द्योतन इस बात की पुष्टि करते हैं (अनु० २२)। जैनग्रन्थों के अनुसार अयोध्या की स्थिति जम्बूद्वीप के मध्य में मानी जाती है । फैजाबाद के समीप स्थित वर्तमान अयोध्या ही प्राचीन अयोध्या है।
उज्जयिनी (५०.१०)-ग्रन्थ में उज्जयिनी का आलंकारिक वर्णन हुआ है । उज्जयिनी मालवदेश के मध्यभाग में उज्ज्वल गृहों से निर्मल आकाश वाली, स्फुरायमान मणिरत्नों की किरणों से तारागणवाली, शरदऋतु की गगनलक्ष्मी के सदृश शोभायमान हो रही थी (५०.१०)। उज्जयिनी अवन्ति जनपद में थी। इसका अपरनाम कुणालनगर भी था। यह व्यापार का बहुत बड़ा केन्द्र था। यहाँ के व्यापारी विभिन्न देशों में व्यापार के लिए जाते थे। वर्तमान में इसकी पहचान आधुनिक नगर उज्जैन से की जातो है, जो क्षिप्रा के किनारे स्थित है।
काकन्दी (२१७.११, २४४.२९)-कुव० में काकन्दी का दो बार उल्लेख हुप्रा है । यह नगरी तुंग अट्टालक, तोरण, मंदिर, पुर एवं गोपुरों से युक्त, त्रिगड्डा एवं चौराहों से विभक्त तथा जन-धन एवं मणि-कांचन से समृद्ध थी (२१७.१३)। काकन्दी महानगरी के बाह्य उद्यान में भगवान महावीर विहार करते हुए पधारे थे (२४४.२९)। काकन्दी या काकन्दी नगरी जैन एवं बौद्ध परम्परा में समान रूप से प्रसिद्ध है। जैन-परम्परा तीर्थंकर पुष्पदन्त (सुविधिनाथ) की जन्मभूमि के रूप में काकन्दी को मानतो है। जवकि वौद्ध इसे प्राचीन सन्त काकन्द का निवास स्थान मानते हैं। किन्तु संतोषजनक पहचान अभी काकन्दी की नहीं हो सकी है।
डा० बी० सी० भट्टाचार्य काकन्दी की पहचान रामायण में उल्लिखित किष्किन्धा नगरी से करते हैं। किन्तु काकन्दी और किष्किन्धा का शाब्दिक मेल ठीक नहीं बैठता। तथा किष्किन्धा पम्पा, (मैसूर राज्य में स्थित) के पड़ोस में स्थित बतलायी गयी है, जो जन और वौद्ध दोनों के कार्यक्षेत्र से बहुत दूर है। वी० सी० ला ने भट्टाचार्य के मत का खण्डन करते हुए काकन्दी की पहचान उत्तरभारत के किसी नगर से करने का सुझाव दिया है। बाद के अनुसंधान एवं
१. विणीय-पुरिस विणयंकिया विणीया णाम णयरी-कुव० ७.२१. २. समवायांगसूत्र, ८२, पृ० ५८. ३. आ० चू० २, पृ० ५४. ४. क०-ए० ज्यो०, पृ० ४२७. ५. भट्टाचार्या, बी० सी०-द जैन आइकोनोग्राफी, पृ० ६४.६९. ६. जी० पी० मलालसेकर-डिक्शनरी आफ पालि-प्रापर नेमस्, भाग १, पृ० ५५८. ७. लाल-हि० ज्यो० इ०, पृ० ३०२.