Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन बनवाया था। डा० ए० एन० उपाध्ये ने इस नगर की पहचान अमेरकोट (सिन्ध), आमेर (जयपुर) अथवा अमरगढ़ (राजस्थान) से करने की सम्भावना व्यक्त की है। श्री यू० पी० शाह इसकी पहचान अम्बरकोट अथवा डम्बरकोट से करते हैं । सन्दर्भो के आधार पर यह नगर पंजाब एवं राजस्थान की सीमा के पास कहीं होना चाहिए।
आन्ध्र (१५३.११)--आन्ध्र के निवासी सुन्दर देहधारी, महिलाप्रिय एवं भोजन में रौद्र थे। उनकी भाषा तेलुगु सदश थी। सामान्यतः कृष्णा और गोदावरी के मध्यवर्ती प्रदेश को आन्ध्र कहा जा सकता है। आदिपुराण में (१६-१५४) आन्ध्र का उल्लेख सम्भवतः आधुनिक आन्ध्र जनपद के लिए व्यवहृत हुआ है। अतः उद्द्योतनसूरि ने भी आन्ध्र के उल्लेख द्वारा इसी प्रदेश के लोगों का वर्णन किया है। वहाँ के लोग महिलाप्रिय इसलिए रहे होंगे क्योंकि आन्ध्र की स्त्रियां प्राचीन समय से ही प्रसाधनप्रिय रही हैं।
अवन्ति (५०.२)-उद्द्योतनसूरि ने अवन्ति जनपद का विशद वर्णन किया है। नर-नारियों से भरपूर, उपवन, सरोवर आदि से रमणीय, एक गव्यूति के अन्तर से जिसमें गाँव बसे थे-(गाउय मेत्तोग्गामो (५०.१) तथा छह खण्ड वाले भारतवर्ष का सारभूत अवन्ति जनपद था।' अवन्ति जनपद का वर्णन करते समय कहा गया है कि वह मालवदेश समुद्र जैसा था-मालव देसो समुद्दो व्व (५०.८) । इससे ज्ञात होता है कि अवन्ति जनपद और मालव का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध था। अवन्ति की राजधानी का नाम उज्जयिनी था जो उसके मध्यभाग में स्थित थी। मालव का दूसरा भाग अवन्ति दक्षिणापथ के नाम से प्रसिद्ध था, जिसकी राजधानी महिष्मती थी। बौद्ध-साहित्य के अनुसार उज्जयिनी और महिष्मती के बीच का प्रदेश अवन्ति जनपद के नाम से प्रसिद्ध था।
कर्णाटक (१५०.२२)-कुव० में कर्णाटक का दो वार उल्लेख हुआ है। कर्णाटक के छात्र विजयपुरी के मठ में पढ़ते थे तथा कर्णाटक के व्यापारी वहाँ के बाजार में उपस्थित थे, जो घमण्डी और पतंगवृत्ति वाले थे (१५३.७) ।
१. उपाध्ये, कुव० इण्ट्रोडक्शन, पृ० १०२ फुठनोट । २. शाह यू० पी०, एनल ऑफ भंडारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, भाग
___xlviii एवं xlix पृ० 247. ३. स०-स्ट० ज्यो०, पृ० ८७-८८ एवं १३६-३७. ४. जै०- यश० सां०, अ० पृ० २६९. ५. छक्खण्ड-भरह-सारो णाममवंती-जणवओ त्ति, ५०.२. ६. तस्स देसस्स मज्झ भाए-उज्जेणी रेहिरा णयरी । ५०.९,१०. ७. कारमाइकल भण्डारकर लेक्चरस, पृ० ५४. ८. उ० बु० भो०, पृ० ४५०.