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ॐ ही अर्हनमः। श्रीकोरटाजी तीर्थ का इतिहास।
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माङ्गलिक-लघुतीर्थवन्दना -
सिद्धगिरि गिरनार आबू शैल-अष्टापद सुखकरु, सम्मेतशिखर जिनवीस ईश शोभित जगजयकरु । धुलेव लोद्रव कोरंट चंपा आदि तीरथ जे मही, स्नेह-सिक्त त्रिकालवंदन अहर्निश हो तिनको सही १ उपल मोती प्रवाल कंचन काष्ठ धातुज मृन्मयी, माणिक्य पुखराज विशद-वेलु रत्न हीरा मणिमयी । स्वर्ग मर्य पाताल नग वन जल अरु थल में जे रहीं, जिनेश-प्रतिमाओं को त्रिकाल वंदन करुं प्रेमें सही २ विदेहमंडन विश्वदीपक विहरमान जिन तीर्थपा, सीमंधरादि जिन वीस के मुनिवरजी गणाधिपा । चौवीसियाँ जिनसूत्र मध्ये भरतादि चेनें कहीं, उन सभी को त्रिकाल वंदन यतीन्द्र का होवो सही ३
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