Book Title: Kortaji Tirth ka Itihas Sachitra
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Sankalchand Kisnaji

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Page 117
________________ दया सागर सभी जगजीव-वत्सल है, हम सेवकों को पुत्र की भिक्षा देकर सुखी करें, हम आप के इस उपकार को कभी न भूलेंगे, और हमारी तमाम प्रजा भी यावच्चन्द्रदिवाकर आपके उपकार को नहीं भूलेगी। आचार्य महाराजने कहा-तुम घबराओ मत, लडका जीता है। बस, कहना ही क्या था ? लडके का जीना सुनते ही राजा प्रजा सब खुश हो गये । राजाने गुरुचरणों में सीस नमा कर कहा-प्रभो ! मेरा लडका जीता रहेगा तो मैं यावजीव तक आपका ऋणी होकर आपकी आज्ञा में रहूंगा, आप मुझे जैसे फरमायेंगे वैसा ही करूंगा। आचार्य महाराजने अपने योग-बल से उस सांप को बुलाया और आदेश दिया कि-'तुम अपने विष को चूंस लो' इतना आदेश पाते ही सांपने कुमार के शरीर में से जहर चूंस लिया। कुमार निराबाध उठके बैठ गया और लाचारी से पिता को पूछने लगा कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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