Book Title: Kortaji Tirth ka Itihas Sachitra
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Sankalchand Kisnaji

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Page 137
________________ ( ११२) जो हुवे सजन विदूर तोही पासे बसे, किहां सायर किहां चन्द देखी मन उल्लसे ॥ ४ ॥ पिण निरागीसुं राग करी श्युं कीजिये । जल जल मरे रे पतंग दीपक न पतीजिये। तिण मरागीसुं राग करता सोहीलो, पिण वीतरागी राग निवाहण दोहीलो ।। ५ ।। पेख्यो प्रतिरूप के परतिख तुज भणी, मोहनी पुत्रनो नेह ते जाणो जगधणी। सकलकला घट माही के प्रगटी तुज अछे, नेह कला निरवाह के परगट नाथ छे॥६॥ जेहने जेहसुं राग ते पिण तेहसु मिले, आंबाकेरो स्वाद निंबोलिये किम टले । जे रम्या जायने फूल से बाउल किम गमे, जे झील्या गंगानीर छिल्लर कहो किम गमे १ ॥७॥ चरण कमल जिनराजसुं लागी प्रीतडी, अवर संसारी देव न ध्यावं एक घडी । कोरटे वीरजिणंद दिगिद सम पेखियो, तिमिर अनादि मिथ्यात्व सहजथी मेटीयो ॥८॥ उगणीसो इगतीस वरस शुभ मास में, चैत्र अमावस दिवस भेट्यो हुल्लास में । मूरिराजेन्द्र महाराज हृदयथी थापज्यो, धनमुनि चरणसरोज सदा मोय राखज्यो ॥९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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