Book Title: Kortaji Tirth ka Itihas Sachitra
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Sankalchand Kisnaji
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( ११०) वसंत चाल, चंदा प्रभुजी से० ए राहआज आनंद अपार रे, प्रभु भेटे मगन में ।
भेटे मगन में देखे मगन में, आज टेर. अतिप्राचीन जिन तीर्थ कहावे, नाम कोरंट उदार रे प्रभु प्रथम मंदिर श्रीवीर विराजे, त्रिशलानन्दन जयकार रे प्रभु० ऋषभजिनेश्वर मंदिर वीजे, त्रीजे पार्श्व सुखकार रे प्रभु० नूतन मंदिर चोथे मांहे, वंदो नाभि-कुमार रे प्रभु. यतीन्द्र मुनि पय--सेवक विद्या, यात्रा करी जग सार रे प्रभु
धन्य दिवस घडी वार रे, प्रभु देखे मगने में ।
देखे मगन में पेखे चिमन में ॥ ध०॥ टेर ॥ प्रयम योगी जिन धर्मघराघव, ऋषभ ऋषभ जयकार रे.प्र.१ समणे भगवं महावीर कहावे, शासनपति सिणगार रे प्र०२ वामानंदन जग जयकारी, पारस पारस धार रे प्र०३ चैत्य मनोहर कोरंट मांही, शोभे जिन जग सार रे प्र. ४ वाचक यतीन्द्रपय सेवाकारी, विद्याविजय शुभकार रेप्र.५
माता मोरादेवी० ए राहजय जय नाभीजी के नंद, कोरटा नगर में
आप विराजो, दर्शन के सुखकंद ॥ टेर ॥ मरति मनोहर तारी स्वामी, देखत मन हरसाय । दर्शनसे मानद हुमा जैसे, भेट्या सिद्धांगरि राय ज०१॥ पूरणशशि सम मुखडो सोहे, अर्धचन्द सम भाल । दर्शन कर मनडो लोभायो, कापो भव जंजाल ॥ ज०२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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