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मेरे सर्व प्रकार से उपकारी हैं। धर्म कर्म का स्वरूप मैं कुछ नहीं जानता, आप जैसे फरमावेंगे वैसा मैं अवश्य अंगीकार करूंगा ।
सूरिजी जानते थे कि ' यथा राजा तथा प्रजा ' राजा धर्मी हो तो प्रजा भी धर्मी होती है । यह सोच कर आचार्य महाराजने सत्रा लाख राजपूतों के सहित राजा को जैनधर्म का उपासक बनाया और उनका ओसवाल नामका वंश स्थापन किया । राजाने चरम तीर्थंङ्कर भगवान् श्रीमहावीरस्वामी का मन्दिर बनवा कर सूरिजी महाराज के हाथ से उस मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई | प्राचीन इतिहासों से पता चलता है कि मारवाड राज्यान्तर्गत कोरटाजी गाँव के श्री संघने भी श्रीमहावीरस्वामी का मन्दिर बनवाया और रत्नप्रभसूरिजी को उस मन्दिर की प्रतिष्ठा का मुहूर्त्त पूछा तथा अति आग्रह से प्रार्थना की कि उस मौके पर आपश्री को जरूर ही पधारना चाहिये, आपश्री के हाथ से ही हम
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