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प्रतिष्ठा करवायँगे । आचार्य महाराजने उनको मुहर्च दिया, परन्तु उसी मुहूर्त पर ओसियाजी में प्रतिष्ठा कराने का वचन आप राजा को दे चुके थे । इस वास्ते आत्मलब्धि से दो रूप बना कर एक ही दिन, एक ही मुहूर्त में आपने दोनों जगह की प्रतिष्ठा करवाई।
___ प्राचु जैनमंदिरों के निर्माता पृष्ठ २-४
ऊएस या ओसवंश के मूल संस्थापक यही रत्नप्रभसूरिजी थे, इन्होंने ओसवंश की स्थापना महावीरनिर्वाण से ७० वर्ष बाद ऊकेश (वर्तमान ओशिया) नगर में की थी। आधुनिक कतिपय कुलगुरु कहा करते हैं कि रत्नप्रभाचार्यने बीये बादीसे (२२२) में ओसवाल बनाये यह कथन कपोल-कल्पित है, इसमें सत्यांश बिलकुल नहीं है । जैनपट्टावली और जैनग्रन्थों में ओसवंश स्थापना का समय महापरनिर्वाण से ७० वर्ष बाद ही लिखा मिलता है जो वास्तविक मालूम होता है।
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