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(९६) विक्रम सं०१४७१ के हस्तलिखित एक प्राचीन -पत्र में लिखा है कि_ 'विक्रम से ४०० वर्ष पूर्व श्रीरत्नप्रभसूरिजीने श्रीमाल के राजा श्रीपुंज के मंत्री ऊहड और ऊधर को सकुटुम्ब प्रतिबोध देकर उनका ओशवंश और १८ गोत्र स्थापन किये, तथा आओशया और कोरंटक नगर में महावीरप्रभु के मन्दिर-प्रतिमा की प्रतिष्ठा दो रूप करके एक ही लग्न में की।' ___यही आशय नाभिनन्दनोद्धारप्रबन्ध कारने भी दर्शाया है, अतएव निःसंदेह सिद्ध है कि ओशवंश के मूल संस्थापक आचार्य रत्नप्रभसूरीश्वरजी ही थे जिन्होंका इतिहास ऊपर दर्ज है। रविप्रभसूरि, वर्द्धमानसूरि, जिनेश्वरसूरि, जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि, जिनचन्द्रसूरि, पप्रसूरि और जयशेखरसूरि आदि समर्थाचायोने भी जुदे जुदे गाँव और नगरों में अनेक राजा
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