Book Title: Kortaji Tirth ka Itihas Sachitra
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Sankalchand Kisnaji

View full book text
Previous | Next

Page 122
________________ ( ९७ ) और क्षत्रियसरदारों को प्रतिबोध देकर, उन्हें ओशवाल बनाये हैं । परन्तु वे ओशवंश के स्थापक नहीं कहे जा सकते, किन्तु उन्हें ओशवंश के नवपल्लवित करनेवाले समझने चाहिये। संस्थापक का सौभाग्य तो पार्श्वनाथसन्तानीय विद्याधरकुलोत्पन्न महाराज श्रीरत्नप्रभसूरी. श्वरजी को ही मिला है। -मुनियतीन्द्रविजय । श्री आदिनाथ स्तुतिःअहं श्री आदिनाथो जगतजनपतिःज्ञानमूर्तिः चिदात्मा, देवेन्द्रादिप्रपूज्यो विविधसुखकरो लोककर्ता च हर्ता । कर्माणां धर्मराजो मुनिगणमनसि स्थैर्यता प्राप्तमानः, सो मे स्वामी शमीशो हरतु कलिमलं कोरटस्थो जिनेशः १ -श्रीभूपेन्द्रसूरि। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138