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काट कर आकाश में उड गया, सभा में हा हा कार मच गया । राजाने विषवैद्य, मंत्र, औषधि, जोगी, ब्राह्मण, विषापहारी - मणि, प्रमुख अनेक उपाय कराये परन्तु उनसे अंशमात्र भी फायदा नहीं हुआ । आखिर सब हताश और निराश हो गये । सब लोग शोकाकुल होते हुए राजा की आज्ञा पा कर राजकुमार के शरीर को अग्निसंस्कार के लिये प्रेत-भवन पर ले गये । इतने में गुरु- महाराज की आज्ञा से चलेने वहाँ जा कर सब को रोका, और कहा कि- ' हमारे गुरु- महाराज का फरमान है कि लडका हमको बिना दिखाये जलाया न जावे ' इस बात को सुन कर राजा उपलदेव के मन में कुछ आशा के अंकूर फिरसे प्रगट हुए । वह सब लोग वहाँ से चल कर सूरिजी के पास पहुंचे, और उनके चरणों में पडकर रोते हुए छाचारी से बोले- प्रभो ! हम निराधारों को आधार मात्र यह एक लडका है । आप दयालु,
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