Book Title: Kortaji Tirth ka Itihas Sachitra
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Sankalchand Kisnaji

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Page 115
________________ नहीं । आप अपने लब्धिबल से इस प्रजा को धर्म की शिक्षा दें, आप चौदह पूर्वधर ज्ञान के सागर हैं । इतने दिन तक मुझको आप जैसे सुपात्र मुनियों के गुणों का परिचय नहीं था, आज आपके सद्गुणों को जान कर आप के धर्मोपदेशों को सुनना चाहती हूं । देवी की इस प्रार्थना से शासनशृङ्गार सूरिजीने देवी को दयाधर्म का महत्व समझाया। देवी को दयाधर्म की प्राप्ति हुई और अरिहन्तदेव के वचनों की उसके मनमें परिपक्क आस्था हो गई। देवी की उस भावनाने इतना प्रौढ बल पकडा किउसकी प्रार्थना आचार्य को माननी ही पड़ी। सूरिजीने गाँव में से रुई की एक पूनी मंगाई और उसका सांप बना कर उसको हुक्म दिया कि 'जैसे दयाधर्म की वृद्धि हो वैसा प्रयत्न तुम करो।' ___ अब वह सांप वहाँ से आकाश के रास्ते उड़ा और सभा में बैठे हुए राजकुमार को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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