Book Title: Kortaji Tirth ka Itihas Sachitra
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Sankalchand Kisnaji
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(२७) परिपूर्ण थे। उपदेशतरंगिणी ग्रन्थ के द्वितीय तरंग में लिखा है कि___" एकदा कोरंटकपुरे श्रीवृद्धदेवसूरयो विक्रमास्सं० १२५२ वर्षे चातुर्मासी स्थिताः, तत्र मंत्री ना. हडोलघुभ्राता सालिगस्तयोः ५०० कुटुम्बानाश्च प्रतिबोधस्तत आश्विनसुदि पापनवम्यां तैर्गुरव उक्ताःप्रभो! अस्माकं गोत्रदेवी चंडिकाधिष्ठातृ सा महिषं मार्गयति किं करिष्यते ?
गुरुभी रात्रौ चण्डिका प्रत्यक्षीकृत्योक्ता-त्वं पूर्वभवे श्रीपुरे धनसार व्यवहारिबधू श्राविका पंचमीदिने धौतिकानि परिधाप्य बालं पुत्रं वञ्चयित्वा देवगृहं प्रतिचलिता । पुत्रो दृष्ट्वा निर्यान्तीं त्वां लग्नो जल्पति स्म तदवसरे महिषस्त्रस्तः, तेन पातितो मारितश्च तव पुत्रः, पुत्राा त्वमपि मृता चण्डिका जाता।
पूर्वभववैरान्महिषानपरान् किं मारयसि ? दयां भज, शान्ता भव ? सा पाह-बहुलकर्माऽहं जीप. वघं त्यक्तुं न शक्नोमि। तर्हि मंत्री नाहडगृहं त्यज? तया तथा कृतम् । मंत्रिणा दृढ धर्मरंगेण ७२ जैनविहाराः 'नाहड़वसही' प्रमुखाः कारिताः कोरंटकादिषु, प्रतिष्ठिता श्रीदेवमूरिभिः सं० १२५२ वर्षे,
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