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कुटुम्बों को जैनी बनाया था। अतएव विक्रम की १३ वीं सदी में कोरटा की जाहोजलाली बड़ी विशाल और समृद्ध थी ऐसा सिद्ध होता है।
श्रीमुनिसुन्दरसूरिविरचित गुर्वावली में लिखा है किवृद्धस्ततोऽभूत् किल देवसूरिः.
शरच्छते विक्रमतः सपादे । कोरंटके यो विधिना प्रतिष्ठां, __ शङ्कोर्व्यधान्नाहडमन्त्रिचैत्ये ।।
--विक्रमसं१२५में वृद्धदेवसूरिजी हुए, जिन्होंने कोरंटनगर में नाहडमंत्री कारित मन्दिर की छाया-लग्न से विधि पूर्वक प्रतिष्ठा की।
विक्रमसं१९४० की मुद्रित जैनतत्त्वादर्श की हिन्दी आवृत्ति के पृष्ठ ५७० में लिखा है कि 'सामन्तभद्रसूरि' के पाट पर श्रीवृद्धदेवसूरि हुए, तथा श्रीमहावीर से ५९५ वर्ष पीछे कोरंट नगर में नाहड नामा मंत्रीने मन्दिर बनवाया।'
इन दोनों उल्लेखों से जान पड़ता है कि उपदेशतरंगिणी में लिखित वृद्धदेवसूरि और
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