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( ५३ ) से दो दो, चार चार मुखियाँओं को बुला कर यहाँ भेले करो । प्रतिष्ठांजनशलाका का मुहर्त भी उनके समक्ष में निश्चित हो जायगा।”
। आचार्यश्री की आज्ञानुसार संघ के कायम किये हुए आदमी उसी वख्त पट्टी के गाँवों में बुलाने को गये कि विना विलम्ब एक ही दिन में सब गाँवों के दोदो, चार चार मुखिया कोरटा में हाजिर हो गये। आचार्य महाराज के इजलास में जाजम हई और आचार्यश्री के उपदेश से सब एकमत हो गये। बस आचार्य महाराजने — सं०१९५९ वै० सु० पूर्णिमा के दिन प्रतिष्टा और अंजनशलाका करने का मुहूर्त नक्की किया।' : शीघ्र ही सम्मिलित संघने एक कमेटी नियत करके, उसके.मार्फत बम्बई और अहमदावाद से प्रतिष्ठांजनशलाका और मंडप योग्य सरसामान मंगवाया.। मुद्रित आमंत्रण-पत्रिकाएँ भी देश परदेश में सर्वत्र भेज दीं। स्वर्ग
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