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(६४ ) उड़ गये तख्ते सुलेमां, कट गये परियों के पर। गर किसीने चार दिन, बांधी हवा कुछ भी -
नहीं ॥ कहे०॥४॥ कहते हैं दुनियां में होता, है हरएक दुःखका इलाज। है वयां दरदे जुदाई की, दवा कुछ भी नहीं।
॥ कहे० ॥ ५॥ जिनके डंके की सदा से, गूंजते वे आलमां। मकबरों दम वखुद है, हूं जहाँ कुछ भी नहीं ।
॥ कहे० ॥ ६॥ जिस कोरंटक नगर की जनसंख्या करने का साहस सुरगुरु भी नहीं कर सकता था, वहाँ की जनसंख्या आज बालकों की अंगुलियों पर गिनी जाने लायक देखी जा रही है, यह किस सहृदय मनुष्य को उदासीन नहीं बना सकती अस्तु । कोरटा ('कोरंटक नगर) की वर्तमान जनसंख्या जाति वार नीचे मुताबिक है, जो १९८६ जेठवदि १४ (-सन् १९२९ ता०६ जून); को खुद वहाँ जाकर हमने कराई थी
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