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परिशिष्ट नम्बर १
श्रीकोटाजी तीर्थ के संस्थापक
श्री रत्नप्रभसूरिजी महाराज का परिचय -
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तेइसवें तीर्थङ्कर भगवान् श्रीपार्श्वनाथ स्वामी के शिष्य श्रीशुभदत्त गणधर थे। उनके शिष्य श्री केशीस्वामी हुए जो गणधर (आचार्य - पदारूढ ) और प्रदेशीराजा के प्रतिबोधक गुरु थे । उनके शिष्य श्रीस्वयम्प्रभसूरिजी अवनीतल को पवित्र करते हुए एकदा समय श्रीमाल ( भीनमाल ) नगर के बाह्योद्यान में मासकल्प रहे । इसी समय वैताढ्यपर्वत का रहनेवाला मणिरत्न नामका प्रख्यात विद्याधर राजा, आठवें द्वीप के अअनगिरि पर्वत पर शाश्वत जिनचैत्यों को वन्दन करने के लिये एक लाख विमानों के
१ उकेश गच्छीय पट्टावली में शुभदत्त के पाट पर ' हरिदत्त ' उनके पाट पर 'आर्यसमुद्र' और उनके पाट पर ' केशीगणधर ' लिखे हैं ।
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